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Showing posts from 2012

आँधी - तूफ़ान का क्या, तुझको कोई खौफ नहीं ?

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कैसे...??? इस तरह तूने मुझको, गले लगाया कैसे ? तेरा काज़ल मेरे रुखसार पर आया कैसे ? आँधी - तूफ़ान का क्या, तुझको कोई खौफ नहीं ? मुझसे मिलने भरी बरसात में, आया कैसे ? बात करना भी गवारा ना था मुझसे तुमको... टेलीफोन पर गीत मुहब्बत का सुनाया कैसे ? मोबाइल पर ही ले लिया मेरे जज़्बात का बोसा... भींगती रात में ये जश्न, मनाया कैसे ? जिन्दगी राग भी, ग़ज़ल भी, नगमा भी है "अल्फा" ... दिल के सरगम पर इसे तूने गाया कैसे ? ये तो चंद पल की कहानी है यारों... अपने जिन्दगी से मुझको अलग बसाया कैसे ? _______________ भरत अल्फा 

नज़रें "अल्फा" की तुमको बहुत ढूँढती रही...

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रात - बारात  कल थी नशे में रात, मगर तुम वहाँ  ना थे , जज़्बात भी थे साथ, मगर तुम वहाँ  ना थे..। पूनम का चाँद झील से उतरा था जिस घड़ी..! करनी थी तुमसे बात, मगर तुम वहाँ  ना थे...।। मंज़र था चाँदनी सराबोर हर तरफ , रंगीं  थी कायनात, मगर तुम वहाँ  ना थे..। डोली मेरी उठी तो ज़नाज़े के रंग में ; था गाँव सारा साथ, मगर तुम वहाँ  ना थे...।। मधुशाला के आँगन में, नशे में था शराब , किस-किस को पिलाया मैंने, मगर तुम वहाँ  ना थे..। नज़रें "अल्फा" की तुमको बहुत ढूँढती रही ; आई  तो थी बारात, मगर तुम वहाँ  ना थे...।। ____________________________ अल्फा 

मेरी ये ठाठ नवाबी कहूँ तो ..।।

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नवाबी दिल ... किसी को कातिल , किसी को शराबी कहूँ तो ... बुरा हूँ क्यूँ .? गर खराबी को खराबी कहूँ तो ..।। बेशक़ दर्ज है यहाँ , उसकी बेबसी की दास्ताँ ... जिन लफ्जों में लिखी , वो किताबी कहूँ तो ..।। इस कदर बेताब , वो अब मुझसे मिलने को ... कि उसकी तड़प को उसके , मैं बेताबी कहूँ तो ..।। नज़रें मेहरबां  तो है , मगर देखूं कहाँ तक ..? तेरी रौशनी में चाँद , या आफताबी कहूँ तो ..।। रंग बदला सा लगता है , अब उस आसमां का .. जिन रंगों में बदली , मैं उसे गुलाबी कहूँ तो ..।। ख्वाहिशें मेरी , ये ना जाने कहाँ गुम  हो गयी है .? उन ख्वाहिशों को गर , मैं  लाज़बाबी कहूँ तो ..।। अब उसकी ..., इस मासूमियत पर क्या कहें " अल्फा " .? की हुस्न का मिला , उसे ये खिताबी कहूँ तो ..।। वही अदब , वही नज़ाक़त , भले ही चली गयी ... मगर अब भी है , मेरी ये ठाठ नवाबी कहूँ तो ..।। _______________________________ भरत अल्फा 

राधा ऐसी भयी श्याम की दीवानी की ब्रिज की कहानी हो गयी।

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                                              राधे-राधे  राधा ऐसी भयी श्याम की दीवानी, की ब्रिज की कहानी हो गयी। एक भोली भाली  गाँव की गवारण , तो पंडितों की बानी हो गयी।                                       राधा ना होती,  तो  ब्रिन्दाबन भी, ब्रिन्दाबन ना होता, कान्हा तो होते, बंसी  भी होती, बंसी में प्राण न होता। प्रेम  की भाषा जानता ना कोई,  कन्हैया को योगी मानता ना कोई , बिना परिणय के वो प्रेम की पुजारन , कान्हा की पटरानी हो गयी। राधा ऐसी भयी श्याम की दीवानी, की ब्रिज की कहानी हो गयी।               राधा की पायल न बजती तो मोहन , ऐसी न रास रचाते, निंदिया चुरा कर, मधुबन बुला कर, ऊँगली पे किसको नचाते। क्या ऐसी खुशबू चन्दन में होती ? क्या ऐसी मिश्री माखन में होती ?          थोड़ा सा माखन, खिला के वो ग्वालन , अन्नपूर्णा सी दानी हो गयी। एक भोली भाली  गाँव की गवारण , तो पंडितों की बानी हो गयी। राधा न होती तो कुञ्ज  भी, ऐसी निराली न होती. राधा के नैना न रोते तो यमुना, ऐसी काली न होती। सावन तो होता, झू

जय हिंद...!!!

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10 मई ,  स्वतंत्रता संग्राम का पहला अध्याय, इसी दिन आज़ादी पहली बिगुल फूंकी गयी थी। बड़ी संख्या में वैज्ञानिक तथा इंजिनियर  देश को छोड़ कर पैसों के लालच में या अधिक पैसे कमाने के लिए  विदेश चले जाते हैं।  यह भी सही है की वहां उन्हें अधिक पैसा मिलता है, परन्तु  वही काम जो विदेश में करते हैं, अपने देश के लिए किया जाए। देश के प्रत्येक नागरिक के जुबां पर आप आ जायेंगे, लेकिन क्या यही प्यार और  सम्मान विदेश में आपको मिलेगा.? कभी नहीं . प्यारे देशवाशियों, उनके  कुर्बानी को सार्थक बनाओ।  जय हिंद...!!!

प्यार का नशा

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  प्यार का नशा आती है बहारें गुलशन में , हर फूल मगर तब खिलता है, करते हैं मुहब्बत सब ही मगर, हर दिल को सिला तब मिलता है... दो प्यार भरे दिल रौशन हैं, वो रात बहुत अंधियारी है, जब प्यार की राहों में आकर, दिल पे दिल ही वारी है... जुल्फों  की बदलियों में, रातों में है नशा, महबूब की अदा में, बातों में है नशा. दिलदार की शराबी आँखों में है नशा, होठों की सुर्ख़ियों में, साँसों में है नशा... ना पूछ यार मुहब्बत का मज़ा कैसा है, कोई दिन-रात ख़यालों में बसा रहता है... बड़ी हसीन इसमें शाम ज़हर होती है, ना दर्द-ओ-गम की ना-दुनियाँ की खबर होती है... वो चुपके-चुपके आँखों से आँखें लड़ाना, वो चुपके से पलकों पे आँसू सजाना... वो चुपके से ख़्वाबों में दुल्हन बनाना, वो चुपके से मस्ताना दिल में उतरना... गुलाबी नर्म से होठों को चूम के देखो, किसी की मद भरी बाँहों में झूम के देखो... " अल्फा " ये प्यार का ऐसा शुरूर छाएगा, तुझे जमीं पे भी जन्नत का मज़ा आएगा.....                                                                                          

हे यौ दुल्हा, दुलरुआ बाजू की लेब....?

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                                                               हे यौ दुल्हा...                                                                     हे यौ दुल्हा...   हे.. यौ दुल्हा.... हे यौ दुल्हा, दुलरुआ बाजू की लेब...? आहाँ बाबू ल़ा साइकिल कि महिषे ल लेब... हे यौ दुल्हा, दुलरुआ बाजू की लेब....?                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                            काका आहाँ के छैथ बसक खलासी, दाँत टुटा बाबा करैथ बरदक खबासी.. हुनका छुड़ी बाला, हुनका छुड़ी बाला... हुनका छुड़ी बाला नाक पर चढाबी गुलेब.... . आहाँ बाबू ल़ा साइकिल कि महिषे ल लेब... हे यौ दुल्हा, दुलरुआ बाजू की लेब....?                                                                                                           

एक कोने में ग़ज़ल की महफ़िल, एक कोने में मयखाना हो...

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गज़ल : मयखाना                                       लहरा के झूम-झूम के ला, मुस्कुरा के ला फूलों के रस में चाँद की किरणे मिला के ला...                                                                कहते हैं उम्रे-ए-रफ्ता कभी लौटती नहीं जा मयकदे से मेरी जवानी उठा के ला...                                      एक ऐसा घर चाहिए मुझको, जिसकी फ़ज़ा (फिजा) मस्ताना हो एक कोने में ग़ज़ल की महफ़िल, एक कोने में मयखाना हो...                                                          ऐसा घर जिसके दरवाज़े, बंद न हो इंसानों पर शेख-ओ-बेहाल मन, रिन्दों शराबी, सबका आना-जाना हो... एक ऐसा घर चाहिए मुझको...                                       एक तख्ती अंगूर के पानी से, लिख कर दर पर रख दो इस घर में वो आये, जिसको सुबह तलक न जाना  हो... एक ऐसा घर चाहिए मुझको...                                                 जो मयखार यहाँ आता है, अपना मेहमां होता है, वो बाज़ार में जा के पी ले, जिसको दाम चुकाना हो... एक ऐसा घर चाहिए मुझको...                      

करते हैं मुहब्बत सब ही मगर...

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हर दिल को सिला तब मिलता है.. आधी रात को ये दुनियां वाले जब ख़्वाबों में खो जाते हैं. ऐसे में मुहब्बत के रोगी यादों के चराग जलाते हैं... करते हैं मुहब्बत सब ही मगर... हर दिल को सिला तब मिलता है... आती बहारें गुलशन में... हर फूल मगर तब खिलता है... करते हैं मुहब्बत सब ही मगर... मैं रांझा न था, तू हीर न थी... हम अपना प्यार निभा न सके, यूँ प्यार के ख्वाब बहुत देखे... ताबीर मगर हम पा न सके... मैंने तो बहुत चाहा लेकिन, तुम रख न सकी बातो का भरम... अब रह-रह कर याद आता है.. जो तुने किया एस दिल पे सितम,  करते हैं मुहब्बत सब ही मगर... पर्दा जो हटा दूँ  तेरे चेहरे से, तुझे लोग कहेंगे हरजाई, मजबूर हूँ मैं दिल के हाथों.. मंज़ूर नहीं तेरी रुसवाई... सोचा है कि अपने होठों पर मैं चुप की मुहर लगा दूंगा... मैं तेरी सुलगती यादों से अब इस दिल को बहला लूँगा... करते हैं मुहब्बत सब ही मगर... करते हैं मुहब्बत सब ही मगर... हर दिल को सिला तब मिलता है... आती बहारें गुलशन में...हर फूल मगर तब खिलता है... करते हैं मुहब्बत सब ही मगर... _______________________________ भरत अल्फा

मिलने का बहाना ...................

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गाँव तो एक बहाना है. गाँव में तो उनसे मिलने जाना है. वो कमीने दोस्त, जिनके साथ करते थे मस्ती. जब समोसा था दो रूपए का और चाय थी सस्ती..... कंधे पर रहता था एक दूजे का हाथ. सारे जग में लगता था अपना हो राज़. जिन्दगी के वो लम्हे, जो सिर्फ दोस्ती के नाम थे. हाथ में कभी गधे, तो कभी कुत्ते के लगाम थे... वो दूसरे के खेतों से गन्ने चुराना, वो चुपके से रातों को सिटी बजाना... वो पेड़ो की शाखों पे झूले लगाना, वो बूड्ढे की धोती में रॉकेट जलाना... वो खेतों की मेड़ों पे गप्पे लड़ाना, वो अरहर की डंडे से लड़ना-झगड़ना... वो तालाब जिसमे अक्सर नहाते थे हम, वो नदियाँ जिसमे नाव चलाते थे हम... वो दोस्त, वो गलियां, वो बूड्ढे, वो नदियाँ.... वो झूले, वो खेत, वो गन्ने, वो कलियाँ... समय उसे फिर से बुलाने लगी है... मुझे लगा शायद कोई मुझे बुलाने लगी है..... ____________________________ Bharat Alpha

बस इतना याद है और हमारे होठों पर मुस्कान तैर जाता है.....!!!

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दोस्ती एक ऐसा शब्द, जिसके एहसास भर से चेहरे पर खुशियाँ छाने लगती है.. मन में हजारों ख्याल उमरने घुमरने  लगते हैं... न चाहते हुए भी हम बादलों के पार एक ऐसी दुनियां में सफ़र करने लगते हैं, जहा सिर्फ और सिर्फ  खुशियों का ही बसेरा है... दिल तो यादों के गलियारों में बेफिक्र घुमने लगता है... फ्लैशबैक की साड़ी बातें हमारे सामने आकर खड़ी हो जाती है.. . बचपन में वो गिल्ली-डंडा खेलना, स्कूल बंक मार कर सिनेमा हॉल के बहार जाकर फिल्मों के पोस्टर निहारना... कॉलेज के दिनों में बीयर की पहली बोतल, बाइक  से शहर में घूमना, कॉलेज कैंटीन में बैठ कर घंटों बातें करना, बेल बजने के बाद भी क्लास में जाने की नो टेंशन ..... बस इतना याद है, और हमारे होठों पर मुस्कान तैर जाता है.....

इसमे होती नहीं शर्तें.. ये तो नाम है खुद एक शर्त में बांध जाने का....

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दोस्ती नाम है सुख-दुःख के अफसाने का... ये राज़ है सदा मुस्कुराने का... ये पल-दो-पल की रिश्तेदारी नहीं.. ये तो फ़र्ज़ है उम्र भर निभाने का... जिंदगी में आकर कभी वापस न जाने का... न जाने क्यूँ एक अजीब सी डोर में बांध जाने का... इसमे होती नहीं शर्तें.. ये तो नाम है खुद एक शर्त में बांध जाने का.... दोस्ती उस रिश्ते का नाम है जो, जो किसी न किसी रूप में हर relation  में मौजूद है. इसकी महक से हर रिश्ता खुद-ब-खुद मजबूत बनता है... दोस्ती एक एहसास है छुअन है, विश्वाश है.. _____________________________________BHARAT  ALPHA