मिलने का बहाना ...................


गाँव तो एक बहाना है.
गाँव में तो उनसे मिलने जाना है.





वो कमीने दोस्त, जिनके साथ करते थे मस्ती.
जब समोसा था दो रूपए का और चाय थी सस्ती.....


कंधे पर रहता था एक दूजे का हाथ.
सारे जग में लगता था अपना हो राज़.
जिन्दगी के वो लम्हे, जो सिर्फ दोस्ती के नाम थे.
हाथ में कभी गधे, तो कभी कुत्ते के लगाम थे...




वो दूसरे के खेतों से गन्ने चुराना,
वो चुपके से रातों को सिटी बजाना...



वो पेड़ो की शाखों पे झूले लगाना,
वो बूड्ढे की धोती में रॉकेट जलाना...




वो खेतों की मेड़ों पे गप्पे लड़ाना,
वो अरहर की डंडे से लड़ना-झगड़ना...
वो तालाब जिसमे अक्सर नहाते थे हम,
वो नदियाँ जिसमे नाव चलाते थे हम...




वो दोस्त, वो गलियां, वो बूड्ढे, वो नदियाँ....
वो झूले, वो खेत, वो गन्ने, वो कलियाँ...
समय उसे फिर से बुलाने लगी है...
मुझे लगा शायद कोई मुझे बुलाने लगी है.....





____________________________ Bharat Alpha

Comments

Read More

मैं हवा हूँ, कहाँ वतन मेरा...

सामा चकेवा :: मिथिलांचल

घायल सैनिक का पत्र - अपने परिवार के नाम...( कारगिल युद्ध )

जोश में होश खो जाना, जवानी की पहचान है...

आलसी आदमी

लोग कहते हैं मैं शराबी हूँ.....

Rashmirathi - Ramdhari singh 'dinkar'... statements of Karna....

आरम्भ है प्रचंड बोले मस्तकों की झुंड आज जंग की घड़ी की तुम गुहार दो,...

होठों पर गंगा हो, हाथो में तिरंगा हो....

समझ लेना कि होली है...