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प्यार का नशा

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  प्यार का नशा आती है बहारें गुलशन में , हर फूल मगर तब खिलता है, करते हैं मुहब्बत सब ही मगर, हर दिल को सिला तब मिलता है... दो प्यार भरे दिल रौशन हैं, वो रात बहुत अंधियारी है, जब प्यार की राहों में आकर, दिल पे दिल ही वारी है... जुल्फों  की बदलियों में, रातों में है नशा, महबूब की अदा में, बातों में है नशा. दिलदार की शराबी आँखों में है नशा, होठों की सुर्ख़ियों में, साँसों में है नशा... ना पूछ यार मुहब्बत का मज़ा कैसा है, कोई दिन-रात ख़यालों में बसा रहता है... बड़ी हसीन इसमें शाम ज़हर होती है, ना दर्द-ओ-गम की ना-दुनियाँ की खबर होती है... वो चुपके-चुपके आँखों से आँखें लड़ाना, वो चुपके से पलकों पे आँसू सजाना... वो चुपके से ख़्वाबों में दुल्हन बनाना, वो चुपके से मस्ताना दिल में उतरना... गुलाबी नर्म से होठों को चूम के देखो, किसी की मद भरी बाँहों में झूम के देखो... " अल्फा " ये प्यार का ऐसा शुरूर छाएगा, तुझे जमीं पे भी जन्नत का मज़ा आएगा.....