नज़रें "अल्फा" की तुमको बहुत ढूँढती रही...

रात - बारात 




कल थी नशे में रात, मगर तुम वहाँ  ना थे ,
जज़्बात भी थे साथ, मगर तुम वहाँ  ना थे..।
पूनम का चाँद झील से उतरा था जिस घड़ी..!
करनी थी तुमसे बात, मगर तुम वहाँ  ना थे...।।




मंज़र था चाँदनी सराबोर हर तरफ ,
रंगीं  थी कायनात, मगर तुम वहाँ  ना थे..।
डोली मेरी उठी तो ज़नाज़े के रंग में ;
था गाँव सारा साथ, मगर तुम वहाँ  ना थे...।।




मधुशाला के आँगन में, नशे में था शराब ,
किस-किस को पिलाया मैंने, मगर तुम वहाँ  ना थे..।
नज़रें "अल्फा" की तुमको बहुत ढूँढती रही ;
आई  तो थी बारात, मगर तुम वहाँ  ना थे...।।

____________________________ अल्फा 

Comments

Post a Comment

Hello! Welcome to Alpha's SHOWSTYLE. Give your feedback about this content...

Read More

मैं हवा हूँ, कहाँ वतन मेरा...

सामा चकेवा :: मिथिलांचल

घायल सैनिक का पत्र - अपने परिवार के नाम...( कारगिल युद्ध )

जोश में होश खो जाना, जवानी की पहचान है...

आलसी आदमी

लोग कहते हैं मैं शराबी हूँ.....

Rashmirathi - Ramdhari singh 'dinkar'... statements of Karna....

आरम्भ है प्रचंड बोले मस्तकों की झुंड आज जंग की घड़ी की तुम गुहार दो,...

होठों पर गंगा हो, हाथो में तिरंगा हो....

समझ लेना कि होली है...