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Showing posts from 2018

सामा चकेवा :: मिथिलांचल

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सामा  चकेवा सामा चकेवा बिहार में मैथिली भाषी लोगों का यह एक प्रसिद्ध त्यौहार है | भाई – बहन के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध को दर्शाने वाला यह त्यौहार नवम्बर माह के शुरू होने के साथ मनाया जाता है |इसका बर्णन पुरानों में भी मिला है | सामा – चकेवा एक कहानी है | कहते हैं की सामा कृष्ण की पुत्री थी जिनपर अबैध सम्बन्ध का गलत आरोप लगाया गया था  जिसके कारण सामा के पिता कृष्ण ने गुस्से में आकर उन्हें मनुष्य से पक्षी बन जाने की सजा दे दी | लेकिन अपने भाई चकेवा के प्रेम और त्याग के कारण वह पुनः पक्षी से मनुष्य के रूप में आ गयी | पर्व का प्रकृति शाम होने पर युवा महिलायें अपनी संगी सहेलियों की टोली में मैथिली लोकगीत गाती हुईं अपने-अपने घरों से बाहर निकलती हैं | उनके हाथों में बाँस की बनी हुई टोकड़ियाँ रहती हैं|टोकड़ियों में मिट्टी से बनी हुई सामा-चकेवा की मूर्तियाँ , पक्षियों की मूर्तियाँ एवं चुगिला की मूर्तियाँ रखी जाती है | मैथिली भाषा में जो चुगलखोरी करता है उसे चुगिला कहा जाता है | मिथिला में लोगों का मानना है कि चुगिला ने ही कृष्ण से सामा के बारे में चुगलखोरी की थी |

छठ पर्व :: आस्था तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण

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छठ पर्व, छठ या षष्‍ठी पूजा  कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाया जाने वाला एक हिन्दू पर्व है। सूर्योपासना का यह अनुपम लोकपर्व मुख्य रूप से पूर्वी भारत के बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। प्रायः हिन्दुओं द्वारा मनाये जाने वाले इस पर्व को इस्लाम सहित अन्य धर्मावलम्बी भी मनाते देखे गये हैं। धीरे-धीरे यह त्योहार प्रवासी भारतीयों के साथ-साथ विश्वभर में प्रचलित हो गया है। छठ पूजा सूर्य और उनकी पत्नी उषा को समर्पित है ताकि उन्हें पृथ्वी पर जीवन की देवताओं को बहाल करने के लिए धन्यवाद और कुछ शुभकामनाएं देने का अनुरोध किया जाए। छठ में कोई मूर्तिपूजा शामिल नहीं है। यह त्यौहार नेपाली और भारतीय लोगों द्वारा मनाया जाता है। लोक आस्था का पर्व भारत में सूर्योपासना के लिए प्रसिद्ध पर्व है छठ। मूलत: सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है। यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाये जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ व कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाये जाने वाले पर्व को

उस रोज़ 'दिवाली' होती है ।

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उस रोज़ 'दिवाली' होती है । यह कविता आदरणीय अटल बिहारी वाजपेयी जी की है और दीपावली की शुभकामनाएं इससे ज्यादा अच्छी तरह व्यक्त नहीं की जा सकती। सभी को  दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं 💐💐💐💐💐💐💐💐💐 जब मन में हो मौज बहारों की चमकाएँ चमक सितारों की, जब ख़ुशियों के शुभ घेरे हों तन्हाई  में  भी  मेले  हों, आनंद की आभा होती है  उस रोज़ 'दिवाली' होती है ।        जब प्रेम के दीपक जलते हों        सपने जब सच में बदलते हों,        मन में हो मधुरता भावों की        जब लहके फ़सलें चावों की,        उत्साह की आभा होती है         उस रोज़ दिवाली होती है । जब प्रेम से मीत बुलाते हों दुश्मन भी गले लगाते हों, जब कहींं किसी से वैर न हो सब अपने हों, कोई ग़ैर न हो, अपनत्व की आभा होती है उस रोज़ दिवाली होती है ।         जब तन-मन-जीवन सज जाएं        सद्-भाव  के बाजे बज जाएं,        महकाए ख़ुशबू ख़ुशियों की       मुस्काएं चंदनिया सुधियों की,       तृप्ति  की  आभा होती  है       उस रोज़ 'दिवाली' होती है । आपको सादर सपर

जीवन क्या है? – What is Life?

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Life – जीवन विलियम शेक्सपियर ( William Shakespeare ) ने कहा था कि जिंदगी एक रंगमंच है और हम लोग इस रंगमंच के कलाकार | सभी लोग जीवन ( Life ) को अपने- अपने नजरिये से देखते है| कोई कहता है जीवन एक खेल है ( Life is a game ), कोई कहता है जीवन ईश्वर का दिया हुआ उपहार है ( Life is a gift ), कोई कहता है जीवन एक यात्रा है ( Life is a journey ), कोई कहता है जीवन एक दौड़ है ( Life is a race ) और बहुत कुछ| मैं आज यहाँ पर “जीवन” के बारें में अपने विचार share कर रहा हूँ और बताने की कोशिश करूंगा की जीवन क्या है?  My Thoughts on Life जीवन क्या है?  – What is Life मनुष्य का जीवन एक प्रकार का खेल है – Life is a Game  और मनुष्य इस खेल का मुख्य खिलाडी| यह खेल मनुष्य को हर पल खेलना पड़ता है| इस खेल का नाम है " Game of Thoughts "  विचारों का खेल इस खेल में मनुष्य को दुश्मनों से बचकर रहना पड़ता है| मनुष्य अपने दुश्मनों से तब तक नहीं बच सकता जब तक मनुष्य के मित्र उसके साथ नहीं है| मनुष्य का सबसे बड़ा मित्र “विचार (thoughts)” है, और उसका सबसे बड़ा दुश्मन भी विचार (Thought

शिक्षक का आत्मविश्वास

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शिक्षक का आत्मविश्वास आपके एक या दो बच्चे हैं। आप उनकी शरारतों पर झल्ला कर कभी कभार उनकी कनपटी सेंक देते है। तो ज़रा सोचिएगा कि एक टीचर इतने सारे बच्चों को कैसे संभालता है। आप खुद tv या mobile में व्यस्त हैं। आपका बच्चा आपके पास आता है। आप उस अधखिले फूल को झिड़क देते है-- "जाओ भागो पढ़ाई करो।"  ज़रा मन को शांत करके विचारियेगा कि एक मास्टर किस तरह अलग-अलग बुद्धिलब्धि वाले और अलग अलग अभिरुचि वाले बच्चों को 40 मिनट एक सूत्र में बाँध के रखता है। आपका बच्चा दिनभर गेम खेलता है, घर पर पढ़ता नही है। इसकी भी शिकायत आप टीचर से करते हैं--- "क्या करें, हमारा मुन्ना तो हमारी बात ही नही सुनता। ज़रा डराइये इसे।" (अरे यार बच्चे को डराना है तो उसे किसी बाघ के सामने ले जाओ।) आप "गुरु ब्रह्मा" टाइप की बातें रटते है। पर आप भगवान तो छोड़िए, टीचर को इंसान तक नही मानते। आप ये मानने को तैयार ही नही कि टीचर का व्यक्तिगत जीवन भी है, उसकी भावनाएं भी है, उसकी लिमिटेशंस भी हैं। आप कहते है कि बच्चे को डांट-डपट के रखिये। सरकार कहती है कि किसी बच्चे को मारना तो दूर

उपलक्ष्य : शिक्षक दिवस का।

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शिक्षक दिवस शिष्य की शिष्यता से तलबगार हैं, शत्रुवत मान कर, करते तकरार हैं। आप गुरु द्रोण जैसे बनें तो सही, हम अंगूठा कटाने को तैयार हैं।। सबसे पहले हमारी प्रथम शिक्षिका माँ को नमन। फिर हमारे सबसे मजबूत शिक्षक पिता को नमन। फिर हमारे स्कूल के उन सभी शिक्षकों को नमन।जिन्होने हमे दुनिया मे रहने लायक बनाया। हमारे जाने अनजाने उन परम् मित्रों को भी नमन। जिन्होने कठिनतम् सवालों को यूँ ही पीठ थपथपा कर समझा दिया। जिनकी वजह से हम आज यहाँ कुछ लिखने के काबिल हुए, उनको भी नमन। अंत में उन सभी लोगों को नमन जिनसे आज तक हमने कुछ न कुछ सीखा है। शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ। ❤️

समझ लेना कि होली है...

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समझ लेना कि होली है... (यदि आप इसे  मोबाइल  पर देख रहे हैं तो कृपया बेहतर परिणामों के लिए अपनी ब्राउज़र सेटिंग्स को  डेस्कटॉप / कंप्यूटर मोड  में बदलें।) जोगीरा... सा रा रा रा रा रा... होली के बारे में आम धारणा ये है कि ये एक उमंगों भरा त्योहार है जो साल में एक बार आता है, ये बात सही है लेकिन मेरा मानना है की होली आनंद की एक अवस्था है जो जब आपके मन में उत्पन्न हो होली हो जाती है। इसी आशय को मैंने अपनी एक ग़ज़ल में ढाला है, उम्मीद है आपको भी मेरी बात पसंद आएगी। नीचे कॉमेंट बॉक्स में अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें। "पिलायी भांग होली में, वो प्याले याद आते हैं ,  गटर ,पी कर गिरे जिनमें, निराले याद आते हैं  भगा लाया तेरे घर से बनाने को तुझे बीवी पड़े थे अक्ल पर मेरी, वो ताले याद आते हैं "   अल्फा   जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की। और दफ़ के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की। परियों के रंग दमकते हों तब देख बहारें होली की। ख़ूम शीश-ए-जाम छलकते हों तब देख बहारें होली की। महबूब नशे में छकते हो तब देख बहारें होली की।  नज़ीर अकबराब