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समझ लेना कि होली है...

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समझ लेना कि होली है... (यदि आप इसे  मोबाइल  पर देख रहे हैं तो कृपया बेहतर परिणामों के लिए अपनी ब्राउज़र सेटिंग्स को  डेस्कटॉप / कंप्यूटर मोड  में बदलें।) जोगीरा... सा रा रा रा रा रा... होली के बारे में आम धारणा ये है कि ये एक उमंगों भरा त्योहार है जो साल में एक बार आता है, ये बात सही है लेकिन मेरा मानना है की होली आनंद की एक अवस्था है जो जब आपके मन में उत्पन्न हो होली हो जाती है। इसी आशय को मैंने अपनी एक ग़ज़ल में ढाला है, उम्मीद है आपको भी मेरी बात पसंद आएगी। नीचे कॉमेंट बॉक्स में अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें। "पिलायी भांग होली में, वो प्याले याद आते हैं ,  गटर ,पी कर गिरे जिनमें, निराले याद आते हैं  भगा लाया तेरे घर से बनाने को तुझे बीवी पड़े थे अक्ल पर मेरी, वो ताले याद आते हैं "   अल्फा   जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की। और दफ़ के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की। परियों के रंग दमकते हों तब देख बहारें होली की। ख़ूम शीश-ए-जाम छलकते हों तब देख बहारें होली की। महबूब नशे में छकते हो तब देख बहारें होली की।  नज़ीर अकबराब