क्या तुझपे नज़्म लिखूँ
क्या तुझपे नज़्म लिखूँ, और कैसा गीत लिखूँ... क्या तुझपे नज़्म लिखूँ, और कैसा गीत लिखूँ जब तेरी तारीफ़ करूँ, सुर-ताल में मीत लिखूँ "कलावती" में तेरी छवि है, मुखड़ा रूप का दर्पण तेरे लबों के रंग में पाए, मैंने " लाली अमन" हवा में उड़ती लट का स्वागत करती "जयजयवंती" महका-महका, खिला-खिला सा तेरा रंग बसंती बाली कमर पे जैसे "पहाड़ी" पर घनघोर घटाएं "मेघ" से नैना सावन भादों, प्रेम का रस बरसाये तेरी "सोहनी" मोहनी सूरत, कोमल कंचन काया जान-ए- ग़ज़ल किस्मत से पायी, तेरे हुस्न की "छाया" जिसमें सुखन " रागेश्वरी" , रूहे-संगीत लिखूँ क्या तुझपे नज़्म लिखूँ, और कैसा गीत लिखूं तेरी " धानर " चुनरिया लहरे, जैसे मधुर बयार प्यार का गुलशन महका-महका, तुझसे जाने बहार तेरी एक झलक है "काफ़ी" , मुझको जान से प्यारी चाल नशीली देखकर तेरी, रख्श करें "दरबारी" सर से पाँव तलक दिलकश, अंदाज तेरा " शहाना " तू मेरी "गुलकली" है जानम, मैं तेरा हूँ दीवाना तेरी चाहत दिल मे लेकर, घूमा देश-विदेश तुझस...