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क्या तुझपे नज़्म लिखूँ

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क्या तुझपे नज़्म लिखूँ, और कैसा गीत लिखूँ... क्या तुझपे नज़्म लिखूँ, और कैसा गीत लिखूँ जब तेरी तारीफ़ करूँ, सुर-ताल में मीत लिखूँ "कलावती"   में तेरी छवि है, मुखड़ा रूप का दर्पण तेरे लबों के रंग में पाए, मैंने " लाली अमन" हवा में उड़ती लट का स्वागत करती  "जयजयवंती" महका-महका, खिला-खिला सा तेरा रंग  बसंती बाली कमर पे जैसे  "पहाड़ी"  पर घनघोर घटाएं "मेघ"  से नैना सावन भादों, प्रेम का रस बरसाये तेरी  "सोहनी"  मोहनी सूरत, कोमल कंचन काया जान-ए- ग़ज़ल किस्मत से पायी, तेरे हुस्न की  "छाया" जिसमें सुखन " रागेश्वरी" , रूहे-संगीत लिखूँ क्या तुझपे नज़्म लिखूँ, और कैसा गीत लिखूं तेरी " धानर " चुनरिया लहरे, जैसे मधुर बयार प्यार का गुलशन महका-महका, तुझसे जाने बहार तेरी एक झलक है  "काफ़ी" , मुझको जान से प्यारी चाल नशीली देखकर तेरी, रख्श करें  "दरबारी" सर से पाँव तलक दिलकश, अंदाज तेरा " शहाना " तू मेरी  "गुलकली"  है जानम, मैं तेरा हूँ दीवाना तेरी चाहत दिल मे लेकर, घूमा देश-विदेश तुझस...

बोलना भी एक कला है।

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बोल कहाँ पर बोलना है, और कहाँ पर बोल जाते हैं। जहाँ खामोश रहना है, वहाँ मुँह खोल जाते हैं।। कटा जब शीश सैनिक का, तो हम खामोश रहते हैं। कटा एक सीन पिक्चर का, तो सारे बोल जाते हैं।। नयी नस्लों के ये बच्चे, जमाने भर की सुनते हैं। मगर माँ बाप कुछ बोले, तो बच्चे बोल जाते हैं।। बहुत ऊँची दुकानों में, कटाते जेब सब अपनी। मगर जब मज़दूर माँगेगा, तो सिक्के बोल जाते हैं।। अगर मखमल करे गलती, तो कोई कुछ नहीँ कहता। फटी चादर की गलती हो, तो सारे बोल जाते हैं।। हवाओं की तबाही को, सभी चुपचाप सहते हैं। च़रागों से हुई गलती, तो सारे बोल जाते हैं।। बनाते फिरते हैं रिश्ते, जमाने भर से अक्सर हम। मगर घर में जरूरत हो, तो रिश्ते भूल जाते हैं।। कहाँ पर बोलना है, और कहाँ पर बोल जाते हैं। जहाँ खामोश रहना है, वहाँ मुँह खोल जाते हैं।।        ✍अज्ञात✍        🙏🙏🙏🙏🙏