Posts

Showing posts from March, 2021

चतुर बहू

चतुर बहू (यदि आप इसे  मोबाइल  पर देख रहे हैं तो कृपया बेहतर परिणामों के लिए अपनी ब्राउज़र सेटिंग्स को  डेस्कटॉप / कंप्यूटर मोड  में बदलें।) किसी गांव में एक सेठ रहता था। उसका एक ही बेटा था, जो व्यापार के काम से परदेस गया हुआ था। एक दिन की बात है, सेठ की बहू कुएँ पर पानी भरने गई। घड़ा जब भर गया तो उसे उठाकर कुएँ के मुंडेर पर रख दिया और अपना हाथ-मुँह धोने लगी। तभी कहीं से चार राहगीर वहाँ आ पहुँचे। एक राहगीर बोला, "बहन, मैं बहुत प्यासा हूँ। क्या मुझे पानी पिला दोगी?" सेठ की बहू को पानी पिलाने में थोड़ी झिझक महसूस हुई, क्योंकि वह उस समय कम कपड़े पहने हुए थी। उसके पास लोटा या गिलास भी नहीं था जिससे वह पानी पिला देती। इसी कारण वहाँ उन राहगीरों को पानी पिलाना उसे ठीक नहीं लगा। बहू ने उससे पूछा, "आप कौन हैं?" राहगीर ने कहा, "मैं एक यात्री हूँ" बहू बोली, "यात्री तो संसार में केवल दो ही होते हैं, आप उन दोनों में से कौन हैं? अगर आपने मेरे इस सवाल का सही जवाब दे दिया तो मैं आपको पानी पिला दूंगी। नहीं तो मैं पानी नहीं पिलाऊंगी।" बेचारा राहगीर उसकी बात का कोई

संगीतमय गधा

संगीतमय गधा  (यदि आप इसे  मोबाइल  पर देख रहे हैं तो कृपया बेहतर परिणामों के लिए अपनी ब्राउज़र सेटिंग्स को  डेस्कटॉप / कंप्यूटर मोड  में बदलें।) गाँव में रहने वाले एक धोबी के पास उद्धत नामक एक गधा (Donkey) था। धोबी गधे से काम तो दिन भर लेता, किंतु खाने को कुछ नहीं देता था। हाँ, रात्रि के पहर वह उसे खुला अवश्य छोड़ देता था, ताकि इधर-उधर घूमकर वह कुछ खा सके। गधा रात भर खाने की तलाश में भटकता रहता और धोबी की मार के डर से सुबह-सुबह घर वापस आ जाया करता था।   एक रात खाने के लिए भटकते-भटकते गधे की भेंट एक सियार से हो गई। सियार ने गधे से पूछा, “मित्र! इतनी रात गए कहाँ भटक रहे हो?” सियार के इस प्रश्न पर गधा उदास हो गया। उसने सियार को अपनी व्यथा सुनाई, “मित्र! मैं  दिन भर अपनी पीठ पर कपड़े लादकर घूमता हूँ। दिन भर की मेहनत के बाद भी धोबी मुझे खाने को कुछ नहीं देता। इसलिए मैं रात में खाने की तलाश में निकलता हूँ। आज मेरी किस्मत ख़राब है। मुझे खाने को कुछ भी नसीब नहीं हुआ। मैं इस जीवन से तंग आ चुका हूँ।” गधे की व्यथा सुनकर सियार को तरस आ गया। वह उसे सब्जियों के एक खेत में ले गया। ढेर सारी सब्जियाँ देखकर

रिश्तों का व्यापार

Image
कदम रुक गए जब पहुंचे       हम रिश्तों के बाज़ार में... (यदि आप इसे  मोबाइल  पर देख रहे हैं तो कृपया बेहतर परिणामों के लिए अपनी ब्राउज़र सेटिंग्स को  डेस्कटॉप / कंप्यूटर मोड  में बदलें।)     कदम रुक गए जब पहुंचे       हम रिश्तों के बाज़ार में...  बिक रहे थे रिश्ते        खुले आम व्यापार में...  कांपते होठों से मैंने पूछा,        "क्या भाव है भाई        इन रिश्तों का...?"   दुकानदार बोला:   "कौन सा लोगे...?   बेटे का ... या बाप का...?   बहिन का... या भाई का...?  बोलो कौन सा चाहिए...?   इंसानियत का... या प्रेम का...?   माँ का... या विश्वास का...?   बाबूजी कुछ तो बोलो       कौन सा चाहिए  चुपचाप खड़े हो        कुछ बोलो तो सही...  मैंने डर कर पूछ लिया       "दोस्त का..."  दुकानदार नम आँखों से बोला  "संसार इसी रिश्ते       पर ही तो टिका है..."  माफ़ करना बाबूजी       ये रिश्ता बिकाऊ नहीं है...  इसका कोई मोल        नहीं लगा पाओगे,  और जिस दिन        ये बिक जायेगा...   " उस दिन ये संसार उजड़ जायेगा..." ।।  सभी मित्रों को समर्पित ।।   नीचे COMMENT BOX  में

कैलेंडर में महीनों के नाम

Image
कैसे पड़ा कैलेंडर में महीनों के नाम?? (यदि आप इसे  मोबाइल  पर देख रहे हैं तो कृपया बेहतर परिणामों के लिए अपनी ब्राउज़र सेटिंग्स को  डेस्कटॉप / कंप्यूटर मोड  में बदलें।) जनवरी, फरवरी से लेकर दिसंबर के महीनों के नाम के पीछे क्या है कारण? एक समय था जब लोग सूरज की किरणों के आधार पर समय और मौसमों के आधार पर दिनों का अंदाजा लगाते थे। यानी कि उस समय सूर्य और चंद्रमा ही कैलेंडर होते थे। जिसके आधार पर सर्दी, गर्मी, पतझड़ आदि मौसम का उन्हें संकेत मिलता था। कैलेंडर का जन्म लोगों की सुविधा के लिए सूरज और चांद की गणना करके कैलेंडर बनाने की शुरुआत हुई, जिसमें कई सैंकड़ों कैलेंडर बने। इसी में भारतीय पांचांग भी एक है।  दुनिया में ग्रेगोरियन कैलेंडर को मान्यता पूरी दुनिया नये साल का जश्न 1 जनवरी को एक साथ मनाती है और इसका श्रेय जाता है ग्रेगोरियन कैलेंडर को, जिसे लगभग सभी देशों में आधिकारिक तौर पर स्वीकार्यता मिली हुई है। इस कैलेंडर को फरवरी 1582 में पोप ग्रेगोरी 8 ने दुनिया के सामने पेश किया था। इसीलिए ग्रेगोरियन कैलेंडर को पश्चिमी क्रिश्चियन कैलेंडर भी कहा जाता है। भारत ने भी 22 मार्च 1957 को शक संवत

नौकर की क़ाबिलियत

Image
नौकर की क़ाबिलियत (यदि आप इसे  मोबाइल  पर देख रहे हैं तो कृपया बेहतर परिणामों के लिए अपनी ब्राउज़र सेटिंग्स को  डेस्कटॉप / कंप्यूटर मोड  में बदलें।) राजा के दरबार में... एक आदमी नौकरी मांगने के लिए आया। उससे उसकी क़ाबिलियत पूछी गई। तो वो बोला,  "मैं किसी को भी बस देख कर उसके बारे में बता सकता हूँ, फिर वो चाहे आदमी हो, चाहे जानवर, शक्ल देख कर उसके बारे में बता सकता हूँ।" 😇 राजा ने उसे अपने खास "घोड़ों के अस्तबल का इंचार्ज" बना दिया। 😎 कुछ ही दिन बाद राजा ने उससे अपने सब से महंगे और मनपसन्द घोड़े के बारे में पूछा। तो उसने कहा, "नस्ली नहीं है।" 😏 राजा को हैरानी हुई। 😳 उसने जंगल से घोड़े वाले को बुला कर पूछा। उसने बताया घोड़ा नस्ली तो हैं, पर इसके पैदा होते ही इसकी मां मर गई थी। इसलिए ये एक गाय का दूध पी कर उसके साथ पला बढ़ा है। राजा ने अपने नौकर को बुलाया और पूछा तुम को कैसे पता चला कि घोड़ा नस्ली नहीं हैं?? 🧐 उसने कहा, "जब ये घास खाता है तो गायों की तरह सिर नीचे करके खाता है।" जबकि नस्ली घोड़ा घास मुंह में लेकर सिर उठा लेता है, और तब खाता है। 😎 राजा उ

भावनाओं की जानकारी

Image
बच्चों को भावनाओं की जानकारी देना बहुत जरूरी है। ( खुद को जाहिर करने का ज़रिया होती हैं भावनाएं ) (यदि आप इसे  मोबाइल  पर देख रहे हैं तो कृपया बेहतर परिणामों के लिए अपनी ब्राउज़र सेटिंग्स को  डेस्कटॉप / कंप्यूटर मोड  में बदलें।) खुशी, दुख, मायूसी, चिढ़, गुस्सा यह सारी भावनाएं हैं जो बच्चे से लेकर बड़े तक हर कोई किसी खास परिस्थिति में ज़ाहिर करता है। बड़ों को पता होता है कि इन भावनाओं को कब, किसके सामने और कैसे जाहिर करना है, लेकिन बच्चों के साथ ऐसा नहीं होता। इसलिए बहुत जरूरी है कि छोटी उम्र से ही न सिर्फ उन्हें इमोशन यानी भावनाओं के बारे बताया जाए, बल्कि उसे स्वीकारने और जाहिर करने का सही तरीका भी बताना चाहिए, इससे वह आगे चलकर तनाव व चिंता से बच सकते हैं। •••===> मिसेज शर्मा का 3 साल के बेटा गुस्सा होने पर सामने रखी हर चीज़ फेक देता है, लेकिन वहीं प्रिया की 3 साल की बेटी ऐसा नहीं करती। गुस्सा उसे भी आता है, लेकिन तब वह बस बात करना बंद कर देती है और शांत बैठ जाती है। दोनों बच्चों के व्यवहार में इस अंतर का कारण है उनके पैरेंट्स। शायद मिसेज शर्मा ने अपने बच्चे को भावनाओं को सही तरीके