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Showing posts from 2020

बचपन के झरोखों से

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पांचवीं तक स्लेट की बत्ती को जीभ से चाटकर कैल्शियम की कमी पूरी करना हमारी स्थाई आदत थी लेकिन इसमें पापबोध भी था कि कहीं विद्यामाता नाराज न हो जायें । पढ़ाई का तनाव हमने पेन्सिल का पिछला हिस्सा चबाकर मिटाया था । "पुस्तक के बीच  पौधे की पत्ती और मोरपंख रखने  से हम होशियार हो जाएंगे ऐसा हमारा दृढ विश्वास था"।  कपड़े के थैले में किताब कॉपियां जमाने का विन्यास हमारा रचनात्मक कौशल था । हर साल जब नई कक्षा के बस्ते बंधते तब कॉपी किताबों पर जिल्द चढ़ाना हमारे जीवन का वार्षिक उत्सव था । माता पिता के लिए हमारी पढ़ाई उनकी जेब पर बोझा न थी ।  सालों साल बीत जाते पर माता पिता के कदम हमारे स्कूल में न पड़ते थे ।  एक दोस्त को साईकिल के डंडे पर और दूसरे को पीछे कैरियर पर बिठा  हमने कितने रास्ते नापें हैं , यह अब याद नहीं बस कुछ धुंधली सी स्मृतियां हैं ।  स्कूल में पिटते हुए और मुर्गा बनते हमारा ईगो हमें कभी परेशान नहीं करता था , दरअसल हम जानते ही नही थे कि ईगो होता क्या है ? पिटाई हमारे दैनिक जीवन की सहज सामान्य प्रक्रिया थी , "पीटने वाला और पिटने  वाला दोनो खुश थे" ,  पिटने वाला इसलिए कि

हम दीये बेच रहे हैं, मगर कोई नहीं खरीद रहा...

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" हम दीये बेच रहे हैं, मगर कोई नहीं खरीद रहा... जब बिक जाएंगे तो हट जाएंगे। " पुलिसवालों के सवाल पर बच्चों ने मासूमियत से दिया ये जवाब। आमतौर पर पुलिस को लेकर लोगों राय बहुत अच्छी नहीं रहती लेकिन यूपी के अमरोहा में ऐसा वाक्या सामने आया है कि पुलिसवालों को सैल्यूट करने का मन करेगा। इस वाक्ये से जुड़ी तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। इस तस्वीर में दो छोटे-छोटे बच्चे बैठ कर मिट्टी के दीये बेचते हुए दिखाई दे रहे हैं वहीं उनके सामने पुलिस वाले खड़े हुए दिखाई दे रहे हैं। एक यूजर ने अपनी पोस्ट में लिखा- " दिवाली का बाजार सजा है। " तभी पुलिस का एक दस्ता बाजार का मुआयना करने पहुंचता है। चश्मदीद का कहना है कि दस्ते में सैद नगली थाना के थानाध्यक्ष नीरज कुमार थे। दुकानदारों को दुकानें लाइन में लगाने का निर्देश दे रहे थे, उनकी नजर इन दो बच्चों पर गई। जो जमीन पर बैठे कस्टमर का इंतजार कर रहे हैं।  चश्मदीद का कहना है कि मुझे लगा अब इन बच्चों को यहां से हटा दिया जाएगा। बेचारों के दीये बिके नहीं और अब हटा भी दिए जाएंगे। रास्ते में जो बैठे हैं…! थानाध्यक्ष बच्चों के पास पहुंचे।

समय का कोई ब्रांड नहीं होता।

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जैसे जैसे मेरी उम्र में वृद्धि होती गई, मुझे समझ आती गई कि अगर मैं Rs. 300 की घड़ी पहनूं या Rs. 3000 की घड़ी पहनूं या Rs. 30000 की या इस से भी अधिक की, सभी समय एक जैसा ही बताएंगी। मेरे पास Rs. 300 का बैग हो या Rs. 3000 का बैग हो या Rs. 30000 का या इस से भी अधिक का। इसके अंदर के सामान में कोई परिवर्तन नहीं होगा। मैं 300 गज के मकान में रहूं या 3000 गज के मकान में या इस से भी अधिक। तन्हाई का एहसास एक जैसा ही होगा। आख़िर में मुझे  यह भी पता चला कि यदि मैं बिजनेस क्लास में यात्रा करूं या इकोनॉमी क्लास में, अपनी मंजिल पर उसी नियत समय पर ही पहुँचूँगा। इसीलिए, अपने बच्चों को बहुत ज्यादा अमीर होने के लिए प्रोत्साहित मत कीजिए बल्कि उन्हें यह सिखाएं कि वे खुश कैसे रह सकते हैं। और जब बड़े हों, तो चीजों के महत्व को देखें, उसकी कीमत को नहीं। फ्रांस के एक वाणिज्य मंत्री का कहना था कि - " ब्रांडेड चीजें व्यापारिक दुनिया का सबसे बड़ा झूठ होती हैं, जिनका असल उद्देश्य तो अमीरों की जेब से पैसा निकालना होता है, लेकिन गरीब और मध्यम वर्ग लोग इससे बहुत ज्यादा प्रभावित होते हैं। " क्या यह आवश्यक है क

जिम्मेदार युवा

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 एक पुत्र अपने वृद्ध पिता को रात्रिभोज के लिये एक अच्छे रेस्टोरेंट में लेकर गया। खाने के दौरान वृद्ध पिता ने कई बार भोजन अपने कपड़ों पर गिराया। रेस्टोरेंट में बैठे दूसरे खाना खा रहे लोग वृद्ध को घृणा की नजरों से देख रहे थे लेकिन उसका पुत्र शांत था। खाने के बाद पुत्र बिना किसी शर्म के वृद्ध को वॉशरूम ले गया। उनके कपड़े साफ़ किये, चेहरा साफ़ किया, बालों में कंघी की, चश्मा पहनाया, और फिर बाहर लाया। सभी लोग खामोशी से उन्हें ही देख रहे थे। फ़िर उसने बिल का भुगतान किया और वृद्ध के साथ बाहर जाने लगा।  तभी डिनर कर रहे एक अन्य वृद्ध ने उसे आवाज दी, और पूछा - क्या तुम्हें नहीं लगता कि यहाँ अपने पीछे तुम कुछ छोड़ कर जा रहे हो?   उसने जवाब दिया - नहीं सर, मैं कुछ भी छोड़कर नहीं जा रहा।   वृद्ध ने कहा - बेटे, तुम यहाँ प्रत्येक पुत्र के लिए एक शिक्षा, सबक और प्रत्येक पिता के लिए उम्मीद छोड़कर जा रहे हो।    आमतौर पर हम लोग अपने बुजुर्ग माता-पिता को अपने साथ बाहर ले जाना पसंद नहीं करते, और कहते हैं - "क्या करोगे, आपसे चला तो जाता नहीं, ठीक से खाया भी नहीं जाता, आप तो घर पर ही रहो, वही अच्छा होगा।&

पोथी, पंडित और प्रेम।

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 मुझे बिलकुल ठीक से याद है कि ये मैने निश्चित कहीं पढा था। पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय। ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।   अब पता लगा कि ये ढाई अक्षर क्या है - ढाई अक्षर के ब्रह्मा और ढाई अक्षर की सृष्टि। ढाई अक्षर के विष्णु और ढाई अक्षर की लक्ष्मी। ढाई अक्षर के कृष्ण और ढाई अक्षर की कान्ता। (राधा रानी का दूसरा नाम) ढाई अक्षर की दुर्गा और ढाई अक्षर की शक्ति। ढाई अक्षर की श्रद्धा और ढाई अक्षर की भक्ति। ढाई अक्षर का त्याग और ढाई अक्षर का ध्यान। ढाई अक्षर की तुष्टि और ढाई अक्षर की इच्छा। ढाई अक्षर का धर्म और ढाई अक्षर का कर्म। ढाई अक्षर का भाग्य और ढाई अक्षर की व्यथा। ढाई अक्षर का ग्रन्थ, और ढाई अक्षर का सन्त। ढाई अक्षर का शब्द और ढाई अक्षर का अर्थ। ढाई अक्षर का सत्य और ढाई अक्षर की मिथ्या। ढाई अक्षर की श्रुति और ढाई अक्षर की ध्वनि। ढाई अक्षर की अग्नि और ढाई अक्षर का कुण्ड। ढाई अक्षर का मन्त्र और ढाई अक्षर का यन्त्र। ढाई अक्षर की श्वास और ढाई अक्षर के प्राण। ढाई अक्षर का जन्म ढाई अक्षर की मृत्यु। ढाई अक्षर की अस्थि और ढाई अक्षर की अर्थी। ढाई अक्षर का प्यार और ढाई अक्षर का यु

वास्तविकता की ओर

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  अनजान नंबर मैंने ट्रेन के दरवाजे के पीछे लिखे नंबर पर कॉल लगाया... "आप रेणु जी बोल रहीं हैं.?" डरी - सहमी सी आवाज में रिप्लाई आया  "जी हां, लेकिन आप कौन और आपको मेरा ये नंबर कहा से मिला.?" "दरअसल वो ट्रेन... दरअसल वो ट्रेन के डिब्बे में किसी ने आपका नंबर आपके नाम से लिख रखा है, शायद आपका कोई अच्छा दुश्मन या फिर कोई बुरा दोस्त होगा।  जो भी हो, मुझे आपसे ये कहना था कि हो सके तो ये नंबर चेंज करवा लीजिये या फिर किसी अच्छे से जवाब के साथ तैयार रहिये।  वैसे अब तक जितने कॉल्स आ गए? अच्छा छोड़िए, आज के बाद अब किसी का भी कॉल नही आएगा। क्योंकि ये नंबर मैं ट्रेन के डब्बे से डिलीट कर चुका हूं। रेणु जी, अब मैं फ़ोन रखता हूं। "अपना ख्याल रखियेगा।" तब उसने मुझे बोला कि नए नए अनजाने नंबर और उनपे गंदे ओर भद्दे बातो की वजह से मैं बहुत परेशान थी। आप जो भी हो आपने मेरी बहुत बड़ी हेल्प की है, क्योंकि मुझे तो समझ ही नही आ रहा था कि ऐसे कॉल क्यों आ रहे हैं। और फिर... मुझे एक अजीब परन्तु वास्तविक दिशा मिली और मैं सार्वजनिक स्थानों पर लिखे ऐसे नंबर को मिटाने में लग गया, ताकि

भावनाओं की लहर

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समुद्र के किनारे जब एक लहर आई तो एक बच्चे की चप्पल अपने साथ बहा ले गई, बच्चा रेत पर अंगुली से लिखता है - "समुद्र चोर है"। उसी समुद्र के एक दूसरे किनारे कुछ मछुआरे बहुत सारे मछली पकड़ रहे होते हैं। वह उसी रेत पर लिखता है - "समुद्र मेरा पालनहार है"। एक युवक समुद्र में डूब कर मर जाता है। उसकी मांँ रेत पर लिखती है - "समुद्र हत्यारा है"। एक दूसरे किनारे एक गरीब बूढ़ा टेढ़ी कमर लिए रेत पर टहल रहा था। उसे एक बड़े सीप में एक अनमोल मोती मिल गया वह रेत पर लिखता है - "समुद्र दानी है"। और अचानक एक बड़ी लहर आती है और रेत पर लिखे हुए सारी बातों को मिटा कर चली जाती है। लोग जो भी कहे समुद्र के बारे में, लेकिन विशाल समुद्र अपनी लहरों में मस्त रहता है।  अपने "उफान" और "शांति" वह अपने हिसाब से तय करता है। अगर विशाल समुद्र बनना है तो किसी के निर्णय पर अपना ध्यान ना दें। जो करना है अपने हिसाब से करें जो गुजर गया उसकी चिंता में ना रहे। हार जीत, खोना पाना, सुख-दुख, इन सबके चलते मन विचलित ना करें। अगर जीवन सुख शांति से ही भरा होता तो आदमी जन्म लेते स