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Showing posts from November, 2020

हम दीये बेच रहे हैं, मगर कोई नहीं खरीद रहा...

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" हम दीये बेच रहे हैं, मगर कोई नहीं खरीद रहा... जब बिक जाएंगे तो हट जाएंगे। " पुलिसवालों के सवाल पर बच्चों ने मासूमियत से दिया ये जवाब। आमतौर पर पुलिस को लेकर लोगों राय बहुत अच्छी नहीं रहती लेकिन यूपी के अमरोहा में ऐसा वाक्या सामने आया है कि पुलिसवालों को सैल्यूट करने का मन करेगा। इस वाक्ये से जुड़ी तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। इस तस्वीर में दो छोटे-छोटे बच्चे बैठ कर मिट्टी के दीये बेचते हुए दिखाई दे रहे हैं वहीं उनके सामने पुलिस वाले खड़े हुए दिखाई दे रहे हैं। एक यूजर ने अपनी पोस्ट में लिखा- " दिवाली का बाजार सजा है। " तभी पुलिस का एक दस्ता बाजार का मुआयना करने पहुंचता है। चश्मदीद का कहना है कि दस्ते में सैद नगली थाना के थानाध्यक्ष नीरज कुमार थे। दुकानदारों को दुकानें लाइन में लगाने का निर्देश दे रहे थे, उनकी नजर इन दो बच्चों पर गई। जो जमीन पर बैठे कस्टमर का इंतजार कर रहे हैं।  चश्मदीद का कहना है कि मुझे लगा अब इन बच्चों को यहां से हटा दिया जाएगा। बेचारों के दीये बिके नहीं और अब हटा भी दिए जाएंगे। रास्ते में जो बैठे हैं…! थानाध्यक्ष बच्चों के पास पहुंचे।

समय का कोई ब्रांड नहीं होता।

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जैसे जैसे मेरी उम्र में वृद्धि होती गई, मुझे समझ आती गई कि अगर मैं Rs. 300 की घड़ी पहनूं या Rs. 3000 की घड़ी पहनूं या Rs. 30000 की या इस से भी अधिक की, सभी समय एक जैसा ही बताएंगी। मेरे पास Rs. 300 का बैग हो या Rs. 3000 का बैग हो या Rs. 30000 का या इस से भी अधिक का। इसके अंदर के सामान में कोई परिवर्तन नहीं होगा। मैं 300 गज के मकान में रहूं या 3000 गज के मकान में या इस से भी अधिक। तन्हाई का एहसास एक जैसा ही होगा। आख़िर में मुझे  यह भी पता चला कि यदि मैं बिजनेस क्लास में यात्रा करूं या इकोनॉमी क्लास में, अपनी मंजिल पर उसी नियत समय पर ही पहुँचूँगा। इसीलिए, अपने बच्चों को बहुत ज्यादा अमीर होने के लिए प्रोत्साहित मत कीजिए बल्कि उन्हें यह सिखाएं कि वे खुश कैसे रह सकते हैं। और जब बड़े हों, तो चीजों के महत्व को देखें, उसकी कीमत को नहीं। फ्रांस के एक वाणिज्य मंत्री का कहना था कि - " ब्रांडेड चीजें व्यापारिक दुनिया का सबसे बड़ा झूठ होती हैं, जिनका असल उद्देश्य तो अमीरों की जेब से पैसा निकालना होता है, लेकिन गरीब और मध्यम वर्ग लोग इससे बहुत ज्यादा प्रभावित होते हैं। " क्या यह आवश्यक है क

जिम्मेदार युवा

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 एक पुत्र अपने वृद्ध पिता को रात्रिभोज के लिये एक अच्छे रेस्टोरेंट में लेकर गया। खाने के दौरान वृद्ध पिता ने कई बार भोजन अपने कपड़ों पर गिराया। रेस्टोरेंट में बैठे दूसरे खाना खा रहे लोग वृद्ध को घृणा की नजरों से देख रहे थे लेकिन उसका पुत्र शांत था। खाने के बाद पुत्र बिना किसी शर्म के वृद्ध को वॉशरूम ले गया। उनके कपड़े साफ़ किये, चेहरा साफ़ किया, बालों में कंघी की, चश्मा पहनाया, और फिर बाहर लाया। सभी लोग खामोशी से उन्हें ही देख रहे थे। फ़िर उसने बिल का भुगतान किया और वृद्ध के साथ बाहर जाने लगा।  तभी डिनर कर रहे एक अन्य वृद्ध ने उसे आवाज दी, और पूछा - क्या तुम्हें नहीं लगता कि यहाँ अपने पीछे तुम कुछ छोड़ कर जा रहे हो?   उसने जवाब दिया - नहीं सर, मैं कुछ भी छोड़कर नहीं जा रहा।   वृद्ध ने कहा - बेटे, तुम यहाँ प्रत्येक पुत्र के लिए एक शिक्षा, सबक और प्रत्येक पिता के लिए उम्मीद छोड़कर जा रहे हो।    आमतौर पर हम लोग अपने बुजुर्ग माता-पिता को अपने साथ बाहर ले जाना पसंद नहीं करते, और कहते हैं - "क्या करोगे, आपसे चला तो जाता नहीं, ठीक से खाया भी नहीं जाता, आप तो घर पर ही रहो, वही अच्छा होगा।&