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Showing posts from November, 2019

भारत के स्टीफन हॉकिन्स

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नेताजी का वशिष्ठ भारत के स्टीफन हॉकिन्स कहे जाने वाले महान गणितज्ञ डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह अस्पताल परिसर के बाहर स्ट्रेचर पर ठीक वैसे ही पड़े थे जैसे बिहार के छपरा में डोरीगंज में वर्षो पहले वो कूड़ा के ढ़ेर पर पड़े मिले थे।  आज से छब्बीस साल पहले जब इनकी पहचान हुई थी तो पटना से दिल्ली तक के अखबारों में इनकी खबरें सुर्खियों में थीं। उन दिनों पटना नवभारत टाईम्स में गुंजन सिन्हा जी हमसे नियमित व्यंग्य लेख लिखवा रहे थे। एक कांठी बाबू कैरेक्टर बनाया था हमने जो हर साप्ताह किसी ना किसी से रू-बरू होते और उनकी बातें कहते। इन्हीं दिनों वशिष्ठ नारायण जी के मिलने की सूचना मिली और देश-दुनिया के अखबारों में इनकी खबरें चलने लगीं। कांठी बाबू  उस सप्ताह वशिष्ठ बाबू की चर्चा मोहल्ले के एक नेताजी से कर रहे थे। सवाल कांठी बाबू का था और जवाब नेताजी का वशिष्ठ नारायण जी के बारे में। अब, आज सुबह जो हाल देखा-पीएमसीएच कैम्पस के बाहर स्ट्रेचर पर वशिष्ठ बाबू की डेड बॉडी पड़ी है अनके भाई इधर-उधर एम्बुलेंस के लिए भटक रहे  आग्रह कर रहे लेकिन अस्पताल प्रशासन एक एम्बुलेंस देने में सक्षम

हम शर्मिंदा हैं वशिष्ठ बाबू

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【हम शर्मिंदा हैं वशिष्ठ बाबू 】 यदि स्टीफन हॉकिंग भारत में पैदा हुए होते, खासकर बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में तो क्या होता? वैज्ञानिक छोड़िये, प्रोफेसर ही बन पाते? प्रतिभा की जो बेकद्री यहाँ होती है, उसे देखते हुए यही लगता है कि यदि स्टीफन यहाँ जन्मे होते तो परिजनों की ही बेकद्री से जूझते हुए निपट जाते. वशिष्ठ नारायण सिंह जी का आज निधन हो गया. लंबे समय से शिजोफ्रेनिया बीमारी से जूझ रहे थे. उनकी इस बीमारी ने उन्हें निजी क्षति तो दी ही, इसके साथ देश और समाज की बेकद्री ने गणित समेत विज्ञान का बहुत नुकसान कर दिया. नेतरहाट के टॉपर रहे, महज एक साल में गणित का स्नातक पूरा किये, 27 साल की उम्र में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से पीएचडी किये, आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत को चुनौती देकर वैश्विक ख्याति प्राप्त किये. नासा में काम किये, आईआईटी कानपुर में प्रोफेसर रहे, टी आई एफ आर में काम किये.  नासा में एक मिशन चल रहा था। अचानक 30 कंप्यूटर फेल हो गए। वहां मौजूद एक शख्स ने लिखकर सटीक गणना कर दी। वह कोई और नहीं वशिष्ठ नारायण सिंह थे। वे सचमुच वशिष्ठ थे।