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नए जमाने की बारिश

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कल हम भी बारिश मे छपाक लगाया करते थे... आज इसी बारिश मे कीटाणु देखना सीख गये ! कल तक संकेत हुआ करते थे बारिश के बुलबुले... आज बुलबुले तो क्या; बारिश देखने को आंख तरस गए...!!! कल बेफिक्र थे कि... माँ क्या कहेगी , आज बारिश से मोबाइल बचाना सीख गये !! कल तक बारिश में.. मोर भी खुशी से नाचते थे; आज तो मेंढक की टर्र-टर्र भी कान खराब करते हैं.. !!! कल दुआ करते थे कि बरसे बेहिसाब तो छुट्टी हो जाए.. अब डरते हैं कि रुके ये बारिश कही ड्यूटी न छूट जाये !!! कल तक याद था कि... बारिश में घूम-घूम कर कीचड़ लगाना है। आज सोचने लगे हैं कि... अल्फा जी का सच में टीचर वाला जमाना है!!! बादल लगी... बारिश आयी... किसान हल उठाए खेत पर की चढ़ाई..!!! कल तक बारिश के बाद इन्द्रधनुष भी याद था... आज तो बस आंखे आसमानों में टिकी हुई हैं। किसने कहा कि... नहीं आती वो बचपन वाली बारिश... हम ख़ुद अब काग़ज़ की नाव बनाना भूल गए !!! ।। बारिश तो अब भी बारिश है।।