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आँधी - तूफ़ान का क्या, तुझको कोई खौफ नहीं ?

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कैसे...??? इस तरह तूने मुझको, गले लगाया कैसे ? तेरा काज़ल मेरे रुखसार पर आया कैसे ? आँधी - तूफ़ान का क्या, तुझको कोई खौफ नहीं ? मुझसे मिलने भरी बरसात में, आया कैसे ? बात करना भी गवारा ना था मुझसे तुमको... टेलीफोन पर गीत मुहब्बत का सुनाया कैसे ? मोबाइल पर ही ले लिया मेरे जज़्बात का बोसा... भींगती रात में ये जश्न, मनाया कैसे ? जिन्दगी राग भी, ग़ज़ल भी, नगमा भी है "अल्फा" ... दिल के सरगम पर इसे तूने गाया कैसे ? ये तो चंद पल की कहानी है यारों... अपने जिन्दगी से मुझको अलग बसाया कैसे ? _______________ भरत अल्फा 

नज़रें "अल्फा" की तुमको बहुत ढूँढती रही...

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रात - बारात  कल थी नशे में रात, मगर तुम वहाँ  ना थे , जज़्बात भी थे साथ, मगर तुम वहाँ  ना थे..। पूनम का चाँद झील से उतरा था जिस घड़ी..! करनी थी तुमसे बात, मगर तुम वहाँ  ना थे...।। मंज़र था चाँदनी सराबोर हर तरफ , रंगीं  थी कायनात, मगर तुम वहाँ  ना थे..। डोली मेरी उठी तो ज़नाज़े के रंग में ; था गाँव सारा साथ, मगर तुम वहाँ  ना थे...।। मधुशाला के आँगन में, नशे में था शराब , किस-किस को पिलाया मैंने, मगर तुम वहाँ  ना थे..। नज़रें "अल्फा" की तुमको बहुत ढूँढती रही ; आई  तो थी बारात, मगर तुम वहाँ  ना थे...।। ____________________________ अल्फा 

मेरी ये ठाठ नवाबी कहूँ तो ..।।

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नवाबी दिल ... किसी को कातिल , किसी को शराबी कहूँ तो ... बुरा हूँ क्यूँ .? गर खराबी को खराबी कहूँ तो ..।। बेशक़ दर्ज है यहाँ , उसकी बेबसी की दास्ताँ ... जिन लफ्जों में लिखी , वो किताबी कहूँ तो ..।। इस कदर बेताब , वो अब मुझसे मिलने को ... कि उसकी तड़प को उसके , मैं बेताबी कहूँ तो ..।। नज़रें मेहरबां  तो है , मगर देखूं कहाँ तक ..? तेरी रौशनी में चाँद , या आफताबी कहूँ तो ..।। रंग बदला सा लगता है , अब उस आसमां का .. जिन रंगों में बदली , मैं उसे गुलाबी कहूँ तो ..।। ख्वाहिशें मेरी , ये ना जाने कहाँ गुम  हो गयी है .? उन ख्वाहिशों को गर , मैं  लाज़बाबी कहूँ तो ..।। अब उसकी ..., इस मासूमियत पर क्या कहें " अल्फा " .? की हुस्न का मिला , उसे ये खिताबी कहूँ तो ..।। वही अदब , वही नज़ाक़त , भले ही चली गयी ... मगर अब भी है , मेरी ये ठाठ नवाबी कहूँ तो ..।। _______________________________ भरत अल्फा