मेरी ये ठाठ नवाबी कहूँ तो ..।।

नवाबी दिल ...



किसी को कातिल , किसी को शराबी कहूँ तो ...
बुरा हूँ क्यूँ .? गर खराबी को खराबी कहूँ तो ..।।

बेशक़ दर्ज है यहाँ , उसकी बेबसी की दास्ताँ ...
जिन लफ्जों में लिखी , वो किताबी कहूँ तो ..।।


इस कदर बेताब , वो अब मुझसे मिलने को ...
कि उसकी तड़प को उसके , मैं बेताबी कहूँ तो ..।।


नज़रें मेहरबां  तो है , मगर देखूं कहाँ तक ..?
तेरी रौशनी में चाँद , या आफताबी कहूँ तो ..।।


रंग बदला सा लगता है , अब उस आसमां का ..
जिन रंगों में बदली , मैं उसे गुलाबी कहूँ तो ..।।




ख्वाहिशें मेरी , ये ना जाने कहाँ गुम  हो गयी है .?
उन ख्वाहिशों को गर , मैं  लाज़बाबी कहूँ तो ..।।


अब उसकी ..., इस मासूमियत पर क्या कहें "अल्फा" .?
की हुस्न का मिला , उसे ये खिताबी कहूँ तो ..।।



वही अदब , वही नज़ाक़त , भले ही चली गयी ...
मगर अब भी है , मेरी ये ठाठ नवाबी कहूँ तो ..।।

_______________________________ भरत अल्फा 

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