हम दीये बेच रहे हैं, मगर कोई नहीं खरीद रहा...
"हम दीये बेच रहे हैं, मगर कोई नहीं खरीद रहा... जब बिक जाएंगे तो हट जाएंगे।"
पुलिसवालों के सवाल पर बच्चों ने मासूमियत से दिया ये जवाब।
आमतौर पर पुलिस को लेकर लोगों राय बहुत अच्छी नहीं रहती लेकिन यूपी के अमरोहा में ऐसा वाक्या सामने आया है कि पुलिसवालों को सैल्यूट करने का मन करेगा।
इस वाक्ये से जुड़ी तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। इस तस्वीर में दो छोटे-छोटे बच्चे बैठ कर मिट्टी के दीये बेचते हुए दिखाई दे रहे हैं वहीं उनके सामने पुलिस वाले खड़े हुए दिखाई दे रहे हैं।
एक यूजर ने अपनी पोस्ट में लिखा- "दिवाली का बाजार सजा है।" तभी पुलिस का एक दस्ता बाजार का मुआयना करने पहुंचता है। चश्मदीद का कहना है कि दस्ते में सैद नगली थाना के थानाध्यक्ष नीरज कुमार थे। दुकानदारों को दुकानें लाइन में लगाने का निर्देश दे रहे थे, उनकी नजर इन दो बच्चों पर गई। जो जमीन पर बैठे कस्टमर का इंतजार कर रहे हैं।
चश्मदीद का कहना है कि मुझे लगा अब इन बच्चों को यहां से हटा दिया जाएगा। बेचारों के दीये बिके नहीं और अब हटा भी दिए जाएंगे। रास्ते में जो बैठे हैं…!
थानाध्यक्ष बच्चों के पास पहुंचे। उनका नाम पूछा। पिता के बारे में पूछा। बच्चों ने बेहद मासूमियत से कहा, "हम दीये बेच रहे हैं। मगर कोई नहीं खरीद रहा। जब बिक जाएंगे तो हट जाएंगे। अंकल बहुत देर से बैठे हैं, मगर बिक नहीं रहे। हम गरीब हैं। दिवाली कैसे मनाएंगे?" - यूजर ने अपनी पोस्ट में लिखा।
'चश्मदीद का कहना है बच्चों की उस वक्त जो हालत थी, बयां करने के लिए लफ्ज नहीं हैं। मासूम हैं, उन्हें बस चंद पैसों की चाह थी, ताकि शाम को दिवाली मना सकें।
नीरज कुमार ने बच्चों से कहा, दीये कितने के हैं? मुझे खरीदने हैं…। थानाध्यक्ष ने दीये खरीदे। इसके बाद पुलिस वाले भी दीए खरीदने लगे।
इतना ही नहीं, फिर थाना अध्यक्ष बच्चों की साइड में खड़े हो गए। बाजार आने-जाने वाले लोगों से दीये खरीदने की अपील करने लगे। बच्चों के दीए और पुरवे कुछ ही देर में सारे बिक गए।
जैसे जैसे दीये बिकते जा रहे थे। बच्चों की खुशी का ठिकाना नहीं था। जब सब सामान बिक गया तो थाना अध्यक्ष और पुलिस वालों ने बच्चों को दिवाली का तोहफा करके कुछ और पैसे दिए।
पुलिस वालों की एक छोटी सी कोशिश से बच्चों की दिवाली हैप्पी हो गई। घर जाकर कितने खुश होंगे वो बच्चे। आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते।
Salute Police
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अगर ये घटना सही है तो यूपी पुलिस बहुत बहुत धन्यवाद के पात्र हैं और अगर सही नहीं है तब भी मानव मूल्यों को समझने-समझाने तथा प्रोत्साहित करने के लिए एकदम सटीक है।
मुझे लगता है, बच्चों को भीख देने से बेहतर है कि अगर वो कुछ बेच रहे हैं तो खरीद लिया जाए, ताकि वो भिखारी न बन जाएं। या किसी अपराध की तरफ रुख ना कर बैठें। उनमें इस तरह मेहनत करके कमाने का जज़्बा पैदा हो सकेगा।
गरीबी ख़तम करने में सरकारें तो नाकाम हो रही हैं और गरीबी खत्म करते करते नेता तो अमीर हो गए लेकिन गरीबी खत्म नहीं हुई। मगर हमारी और आपकी इस तरह की एक छोटी कोशिश किसी की परेशानी को हल कर सकती है।
नोट : हम यहां इस पोस्ट के माध्यम से बाल मजदूरी का किसी भी प्रकार से समर्थन नहीं कर रहे हैं परन्तु गरीबी और गठबंधन की भी अपनी अलग मजबूरियां होती है।
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