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Showing posts from April, 2011

लड़कियों के डर

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लड़कियों के डर भी अजीब होते हैं, भीड़ में हों तो लोगों का डर, अकेले में हों तो सुनसान राहों का डर, गर्मी में हों तो पसीने से भीगने का डर, हवा चले तो दुपट्टे के उड़ने का डर, कोई न देखे तो अपने चेहरे से डर, कोई देखे तो देखने वाले की आँखों से डर, राह में कड़ी धूप हो तो, चेहरे के मुरझाने का डर, वो डरती हैं और तब तक डरती हैं, जब तक उन्हें कोई जीवन साथी नहीं मिल जाता, और वही व्यक्तित्व महान  होता हैं जिसे वो सबसे ज्यादा डराती हैं ..........

मैं हवा हूँ, कहाँ वतन मेरा...

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मैं हवा हूँ, कहाँ वतन मेरा... अब कहाँ हूँ, कहाँ नहीं हूँ मैं... जिस जगह हूँ, वहाँ नहीं हूँ मैं... कौन आवाज़ दे रहा है मुझे... ? कोई कह दे, यहाँ नहीं हूँ मैं...! मैं हवा हूँ, कहाँ वतन मेरा... दश्त मेरा ना ये चमन मेरा मैं के हर चंद, एक ख्व़ा ना नशीं  अंजुमन-अंजुमन सुखन मेरा... दश्त  मेरा ना ये चमन मेरा मैं हवा हूँ, कहाँ वतन मेरा... बर्ग-ए-गुल पर, चराग सा क्या है...? छू गया था उसे, दहन मेरा... दश्त  मेरा ना ये चमन मेरा मैं हवा हूँ, कहाँ वतन मेरा...  मैं के टूटा हुआ सितारा हूँ... क्या बिगाड़ेगी, अंजुमन मेरा... दश्त  मेरा ना ये चमन मेरा मैं हवा हूँ, कहाँ वतन मेरा... हर घड़ी एक नया तकाज़ा है... दर्द-ए-सर बन गया, बदन मेरा दश्त  मेरा ना ये चमन मेरा मैं हवा हूँ, कहाँ वतन मेरा...