करते हैं मुहब्बत सब ही मगर...
हर दिल को सिला तब मिलता है.. आधी रात को ये दुनियां वाले जब ख़्वाबों में खो जाते हैं. ऐसे में मुहब्बत के रोगी यादों के चराग जलाते हैं... करते हैं मुहब्बत सब ही मगर... हर दिल को सिला तब मिलता है... आती बहारें गुलशन में... हर फूल मगर तब खिलता है... करते हैं मुहब्बत सब ही मगर... मैं रांझा न था, तू हीर न थी... हम अपना प्यार निभा न सके, यूँ प्यार के ख्वाब बहुत देखे... ताबीर मगर हम पा न सके... मैंने तो बहुत चाहा लेकिन, तुम रख न सकी बातो का भरम... अब रह-रह कर याद आता है.. जो तुने किया एस दिल पे सितम, करते हैं मुहब्बत सब ही मगर... पर्दा जो हटा दूँ तेरे चेहरे से, तुझे लोग कहेंगे हरजाई, मजबूर हूँ मैं दिल के हाथों.. मंज़ूर नहीं तेरी रुसवाई... सोचा है कि अपने होठों पर मैं चुप की मुहर लगा दूंगा... मैं तेरी सुलगती यादों से अब इस दिल को बहला लूँगा... करते हैं मुहब्बत सब ही मगर... करते हैं मुहब्बत सब ही मगर... हर दिल को सिला तब मिलता है... आती बहारें गुलशन में...हर फूल मगर तब खिलता है... करते हैं मुहब्बत सब ही मगर... _______________________________ भरत अल्फा