हम शर्मिंदा हैं वशिष्ठ बाबू
【हम शर्मिंदा हैं वशिष्ठ बाबू】
यदि स्टीफन हॉकिंग भारत में पैदा हुए होते, खासकर बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में तो क्या होता? वैज्ञानिक छोड़िये, प्रोफेसर ही बन पाते? प्रतिभा की जो बेकद्री यहाँ होती है, उसे देखते हुए यही लगता है कि यदि स्टीफन यहाँ जन्मे होते तो परिजनों की ही बेकद्री से जूझते हुए निपट जाते.
वशिष्ठ नारायण सिंह जी का आज निधन हो गया. लंबे समय से शिजोफ्रेनिया बीमारी से जूझ रहे थे. उनकी इस बीमारी ने उन्हें निजी क्षति तो दी ही, इसके साथ देश और समाज की बेकद्री ने गणित समेत विज्ञान का बहुत नुकसान कर दिया.
नेतरहाट के टॉपर रहे, महज एक साल में गणित का स्नातक पूरा किये, 27 साल की उम्र में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से पीएचडी किये, आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत को चुनौती देकर वैश्विक ख्याति प्राप्त किये. नासा में काम किये, आईआईटी कानपुर में प्रोफेसर रहे, टी आई एफ आर में काम किये.
नासा में एक मिशन चल रहा था। अचानक 30 कंप्यूटर फेल हो गए। वहां मौजूद एक शख्स ने लिखकर सटीक गणना कर दी। वह कोई और नहीं वशिष्ठ नारायण सिंह थे। वे सचमुच वशिष्ठ थे। विशिष्ट थे। बिहार के छोटे से शहर आरा में जन्मे थे। वे बिहार के गौरव थे। देश की शान थे।
पटना के पीएमसीएच में गुरुवार को उन्होंने अंतिम सांस ली। देश के जानेमाने गणितज्ञ की मौत ने एक ऐसा हीरो खो दिया जो नई इबारत लिख रहा था। गणना की। गणित की। आंइस्टीन के मास, लेंथ और टाइम के सिद्धांत को इस गणितज्ञ ने चुनौती दी थी। पटना के पीएमसीएच अस्पताल ने उनकी मौत का तमाशा बना दिया। उनके भाई एंबुलेंस के लिए भटकते रहे।
अचानक शिजोफ्रेनिया के शिकार हो गये. केंद्र से लेकर राज्य में सरकारें आती और जाती रहीं, विलक्षण प्रतिभा उपेक्षित बना रहा. परिवार की भी उपेक्षा मिली, विवाह के कुछ ही समय पश्चात पत्नी भी उनकी बीमारी के कारण छोड़ गयी. एक रोज अचानक वशिष्ठ नारायण सिंह घर से लापता हो गए. 4 साल किसी को उनका अता-पता नहीं, फिर अचानक किसी ढाबे पर मिले, जूठे बर्तन धोते हुए.
आज अंततः गुजर गये. जीवन भर देश-समाज से उपेक्षित रही प्रतिभा के शव की ही क्या कद्र की जाती, मगध साम्राज्य से लेकर आर्यभट्ट और चाणक्य तक पर दाबा ठोक मौसमी गौरव करने वाले बिहार के शीर्ष सरकारी अस्पताल PMCH में दो घंटे उनका पार्थिव शरीर बाहर पड़ा रहा.
संवेदनहीनता की पराकाष्ठा देखिए- अस्पताल प्रशासन ने कहा कि उनका घर पास ही था। लिहाजा वो शव को ले जाएं। यह पहली बार नहीं था। पीएमसीएच में उनका इलाज भी बहुत लापरवाही से चल रहा था। वे गुमनामी में जी रहे थे। उनकी मानसिक स्थिति खराब थी। बिहार की माटी में हीरे निकलते हैं। अफसोस यह है कि इन हीरों को हम न पहचानते हैं। न ही कद्र करते हैं। कद्र होती भी है तो मौत के बाद।
अब श्रद्धांजलियों की बाढ़ आ रही है। संवेदानाएं शून्य हो जाती हैं। ऐसा ही कुछ पिछले कई सालों से वशिष्ठ बाबू के साथ हो रहा था। उन्होंने पहचानना बंद कर दिया था। हम तो पहचानते थे। लोग उनके किस्से बहुत गर्व से बताते हैं। यह गर्व की बात भी है। वे न केवल बिहार की बल्कि पूरे देश की थाती थे। बर्कले यूनिवर्सिटी ने उन्हें जीनियसों का जीनियस ऐसे ही नहीं कहा था।
अस्पतालों में अब संवेदनाएं नहीं बचीं यह हम जानते हैं। लेकिन हम अपनी धरोहरों को मौत के बाद सम्मान भी नहीं दे पाते। वशिष्ठ नारायण जैसे लोग यदाकदा ही इस दुनिया में आते हैं। हमें ऐसे महान पुरुषों को संभालना होगा। उनकी मौत का तमाशा न बने यह सोचना होगा। धंसे हुए सिस्टम को सुधारना होगा। उबारना होगा। नहीं तो ऐसे ही मौत का तमाशा बनता रहेगा। हम अफसोस जताते रहेंगे।
अभी देखा मैंने, नीतीश बाबू से लेकर मोदी जी तक श्रद्धांजलि दे चुके हैं. मुझे कोई शर्म करता नहीं मिला. काश कोई ऐसा बोला होता, 'हम कृतघ्न राष्ट्र..., किस मुंह से श्रद्धांजलि दें आपको!'
बिहार की विडंबना देखिये, गुदड़ी के लाल के 'लाल' दो-चार रोज पहले चार्टर्ड प्लेन में हवाई जन्मदिन मना रहे थे, दो-चार रोज बाद सरस्वती का लाल अपने पार्थिव शरीर के माध्यम से मूक बयान दे रहा था...
एक राष्ट्र के तौर पर भारत की विडंबना देखिये, हम जब सस्ते गौरव का गणित कर रहे होते हैं, हरगोविंद खुराना से लेकर कल्पना चावला तक की गिनती कर लेते हैं. गौरव के इस गणित में शर्म की जगह जरूरी है, लेकिन हम इसकी गिनती नहीं करते.
वशिष्ठ बाबू अमर रहें।
Alpha's SHOWSTYLE
🙏🙏🙏
ReplyDeleteAbsolutely right sir
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