भारत के स्टीफन हॉकिन्स


नेताजी का वशिष्ठ



भारत के स्टीफन हॉकिन्स कहे जाने वाले महान गणितज्ञ डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह अस्पताल परिसर के बाहर स्ट्रेचर पर ठीक वैसे ही पड़े थे जैसे बिहार के छपरा में डोरीगंज में वर्षो पहले वो कूड़ा के ढ़ेर पर पड़े मिले थे। 



आज से छब्बीस साल पहले जब इनकी पहचान हुई थी तो पटना से दिल्ली तक के अखबारों में इनकी खबरें सुर्खियों में थीं। उन दिनों पटना नवभारत टाईम्स में गुंजन सिन्हा जी हमसे नियमित व्यंग्य लेख लिखवा रहे थे। एक कांठी बाबू कैरेक्टर बनाया था हमने जो हर साप्ताह किसी ना किसी से रू-बरू होते और उनकी बातें कहते। इन्हीं दिनों वशिष्ठ नारायण जी के मिलने की सूचना मिली और देश-दुनिया के अखबारों में इनकी खबरें चलने लगीं। कांठी बाबू  उस सप्ताह वशिष्ठ बाबू की चर्चा मोहल्ले के एक नेताजी से कर रहे थे। सवाल कांठी बाबू का था और जवाब नेताजी का वशिष्ठ नारायण जी के बारे में।



अब, आज सुबह जो हाल देखा-पीएमसीएच कैम्पस के बाहर स्ट्रेचर पर वशिष्ठ बाबू की डेड बॉडी पड़ी है अनके भाई इधर-उधर एम्बुलेंस के लिए भटक रहे  आग्रह कर रहे लेकिन अस्पताल प्रशासन एक एम्बुलेंस देने में सक्षम नहीं। कुछ लोगों को कॉल से सूचना दी, सोशल मीडिया पर चलने लगा। न्यूज चैनल भी चलने लगा फिर लगभग दो घंटे बाद एम्बुलेंस मिला और अभी बारह बजे इनके पार्थिव शरीर के पास अचानक इक्के-दुक्के नेता से लेकर जिला प्रशासन फोन कान में लगाए इधर से उधर अपनी रफ्तार में हैं। मीडिया है और मीडिया के कैमरे के सामने कुर्सी-फुल माला के लिए फोन पर बोलते यही लोग। अब मुख्यमंत्री भी आने वाले हैं, फुलों का गोल गुलदस्ता भी अभी-अभी आ गया है।



दो दल के दो नेता में यहां आने का श्रेय पहले लेने में मारापीटी की नौबत भी सबके सामने आ चुकी है। सीएम आनेवाले हैं तीन तो आज बजिए जाएगा पत्रकार भी एक दुसरे के कान में फुसफुसा रहे। सत्ताधरीदल का एक पायजामा-कुरता नेता जैसे कैमरा गाड़ी के अंदर की तरफ होता है, वशिष्ठ बाबु अमर रहें चिल्लाना शुरू कर देता है। आज तीन घंटे का ये सारा ड्रामा देख कर मुझे वही छब्बीस साल पुराने अपने लेख वाले कांठी बाबू याद आए। हू-बहू वही व्यवस्था, वही हाल और सरकार का वही रवैया। उस वक्त के नेताजी का कांठी बाबू को जवाब और आज हमारे सुशासन सरकार की उपेक्षा वाली वही कहानी। कांठी बाबू की वो कहानी-नेताजी का वशिष्ठ यहां पोस्ट कर रहा हूं।



पहली बार वशिष्ठ जी से मिला था फरवरी दो हजार तेरह में। आरा से संजय साश्वत फोन किए थे उन्होंने कहा था कि वशिष्ठ बाबू याद कर रहे हैं । आज के अखबार में छपे कार्टून के बारे में वे पूछे रहे हैं- ई के बनावेला? दूसरे ही दिन यवनिका के उस कार्यक्रम में हम आरा पहुंचे जिस मंच पर उनके साथ हमें भी बैठने का अवसर मिला था और अपनी जो किताब कार्टून की दी वो उस दिन के पूरे कार्यक्रम में एक-एक पन्ना पलटते रहे और निहारते रहे। उनके लिए कांठी बाबू का वो लेख भी लेकर गया था। फिर दूसरी बार उनके गांव बसंतपुर गया उनकी बांसुरी सुनी उनकी मां से भी खूब बातें हुईं। फिर जब-तब
आना - जाना होता रहा। उनका जन्मदिन हो या और दिन। ये सुकुन मिलता रहा कि हर बार वो पहचान लेते और उनके भाई ये देखकर मुस्कुरा रहे होते। कई लोगों से सुना कि बहुत देर तक वो किसी को बर्दाश्त नहीं करते अपने पास। गुस्सा जाते हैं ये हमने भी दो-चार बार देखा है। लेकिन अपने लिए नहीं पाया कभी ऐसा।



पिछले महीने जब अस्पताल गया तो वहीं पड़े अखबार में अपना कार्टून दिखाकर बोला-पहचाने सर? उनका जवाब एक टक उसे देख और फिर मुस्कुराते हुए मेरी तरफ देखते हुए बोले-ई तऽ तूहीं बनावे वाला बाड़ऽ...और अच्छी सूचना ले कर लौटा था कि स्वस्थ होकर वशिष्ठ बाबू लौटे अपने घर। अब ना वो बांसुरी की आवाज मिलेगी ना कागज के टूकड़ों पर बुदबुदाते हुए हमेशा कुछ लिखते रहने वाले वशिष्ठ बाबू। नमन है आपको।



# 2 अप्रैल 1946 : जन्म.
# 1958 : नेतरहाट की परीक्षा में सर्वोच्च स्थान.
# 1963 : हायर सेकेंड्री की परीक्षा में सर्वोच्च स्थान.
# 1964 : इनके लिए पटना विश्वविद्यालय का कानून बदला। सीधे ऊपर के क्लास में दाखिला. बी.एस-सी.आनर्स में सर्वोच्च स्थान.
# 8 सितंबर 1965 : बर्कले विश्वविद्यालय में आमंत्रण दाखिला.
# 1966 : नासा में.
# 1967 : कोलंबिया इंस्टीट्यूट ऑफ मैथेमैटिक्स का निदेशक.
# 1969 : द पीस आफ स्पेस थ्योरी विषयक तहलका मचा देने वाला शोध पत्र (पी.एच-डी.) दाखिल.
# बर्कले यूनिवर्सिटी ने उन्हें "जीनियसों का जीनियस" कहा.
# 1971 : भारत वापस.
# 1972-73: आइआइटी कानपुर में प्राध्यापक, टाटा इंस्टीट्यूट आफ फंडामेंटल रिसर्च (ट्रांबे) तथा स्टैटिक्स इंस्टीट्यूट के महत्वपूर्ण पदों पर आसीन.
# 8 जुलाई 1973 : शादी.
# जनवरी 1974 : विक्षिप्त, रांची के मानसिक आरोग्यशाला में भर्ती.
# 1978: सरकारी इलाज शुरू.
# जून 1980 : सरकार द्वारा इलाज का पैसा बंद.
#1982 : डेविड अस्पताल में बंधक.
# नौ अगस्त 1989 : गढ़वारा (खंडवा) स्टेशन से लापता.
# 7 फरवरी 1993 : डोरीगंज (छपरा) में एक झोपड़ीनुमा होटल के बाहर फेंके गए जूठन में खाना तलाशते मिले.
# तब से रुक-रुक कर होती इलाज की सरकारी/प्राइवेट नौटंकी.
# अक्टूबर 2019 : पीएमसीएच के आईसीयू में.
(ठीक होकर घर लौटे).
# 14 नवंबर 2019 : निधन.
(आज अब और कुछ नहीं। सिर्फ विनम्र श्रद्धांजलि।).


( यह बिहार के मशहूर काटूनिस्ट पवन टून जी का पोस्ट है।)


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