राधा ऐसी भयी श्याम की दीवानी की ब्रिज की कहानी हो गयी।





                                            राधे-राधे 









राधा ऐसी भयी श्याम की दीवानी,
की ब्रिज की कहानी हो गयी।
एक भोली भाली  गाँव की गवारण ,
तो पंडितों की बानी हो गयी।



                                     


राधा ना होती,  तो  ब्रिन्दाबन भी, ब्रिन्दाबन ना होता,
कान्हा तो होते, बंसी  भी होती, बंसी में प्राण न होता।
प्रेम  की भाषा जानता ना कोई,  कन्हैया को योगी मानता ना कोई ,
बिना परिणय के वो प्रेम की पुजारन , कान्हा की पटरानी हो गयी।
राधा ऐसी भयी श्याम की दीवानी,
की ब्रिज की कहानी हो गयी।



             


राधा की पायल न बजती तो मोहन , ऐसी न रास रचाते,
निंदिया चुरा कर, मधुबन बुला कर, ऊँगली पे किसको नचाते।
क्या ऐसी खुशबू चन्दन में होती ?
क्या ऐसी मिश्री माखन में होती ?


        

थोड़ा सा माखन, खिला के वो ग्वालन ,
अन्नपूर्णा सी दानी हो गयी।
एक भोली भाली  गाँव की गवारण ,
तो पंडितों की बानी हो गयी।






राधा न होती तो कुञ्ज  भी, ऐसी निराली न होती.
राधा के नैना न रोते तो यमुना, ऐसी काली न होती।
सावन तो होता, झूले  न होते, राधा के संग नटवर झुले न होते,
सारा जीवन, लुटा के वो भिखारन , धनिकों की राजधानी हो गयी।

                 

एक भोली भाली  गाँव की गवारण,
तो पंडितों की बानी हो गयी।

राधा ऐसी भयी श्याम की दीवानी,
की ब्रिज की कहानी हो गयी।





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