होठों पर गंगा हो, हाथो में तिरंगा हो....
तिरंगा
शोहरत ना अता करना मौला, दौलत ना अता करना मौला...
बस इतना अता करना चाहे, जन्नत ना अता करना मौला...
शम्मां-ए-वतन की लौ पर जब कुर्बान पतंगा हो...
होठों पर गंगा हो, हाथो में तिरंगा हो....
बस एक सदा ही सुने सदा, बर्फीली मस्त हवाओं में...
बस एक दुआ ही उठे सदा, जलते -तपते सेहराओं में...
जीते जी इसका मान रखे, मर कर मर्यादा याद रहे...
हम रहे कभी ना रहे मगर, इसकी सज-धज आबाद रहे...
गोधरा ना हो, गुजरात ना हो, इंसान ना नंगा हो....
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो....
रचना- कुमार विश्वाश
अफसोस होता है कि आप के साथ से आपकी रचनाये भी मर गयी
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