अनचाहा डर

रूबीना का रिजर्वेशन जिस बोगी में था,

उसमें लगभग सभी लड़के ही थे, हां, कुछ गिने चुने महिलाएं जरूर होंगी, लेकिन लड़कों की संख्या ज्यादा थी।

अब एक अंदर का डर सताने लगा, कि अब क्या होगा, कैसे सफर कटेगा, आदि सवालों का घेरा मन में उमरने घुमरने लगा। 


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बहुत हिम्मत जुटा कर टॉयलेट जाने के बहाने रुबिना पूरी बोगी घूम आई थी, मुश्किल से दो या तीन औरतें होंगी ।

मन अनजाने भय से काँप सा गया। पहली बार अकेली सफर कर रही थी, इसलिये पहले से ही घबराई हुई थी।

अतः खुद को सहज रखने के लिए चुपचाप अपनी सीट पर मैगज़ीन निकाल कर पढ़ने लगी।


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नवयुवकों का झुंड, जो शायद किसी कैम्प जा रहे थे, के हँसी - मजाक , चुटकुले आदि उसके हिम्मत को और भी तोड़ रहे थे ।

रूबिना के भय और घबराहट के बीच अनचाही सी रात धीरे - धीरे उतरने लगी ।

सहसा सामने के सीट पर बैठे लड़के ने कहा --

" हेलो , मैं एहसान और आप ? "


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भय से पीली पड़ चुकी रुबिना ने कहा -- " जी मैं ........."

"कोई बात नहीं , नाम मत बताइये ।

वैसे कहाँ जा रहीं हैं आप ?"


रुबिना ने धीरे से कहा-- "इलाहबाद"


"क्या इलाहाबाद"... ?

वो तो मेरा नानी -घर है।

इस रिश्ते से तो आप मेरी बहन लगीं ।

खुश होते हुए एहसान ने कहा ।


और फिर इलाहाबाद की अनगिनत बातें बताता रहा कि उसके नाना जी काफी नामी व्यक्ति हैं, उसके दोनों मामा सेना के उच्च अधिकारी हैं और ढेरों नई - पुरानी बातें ।


रुबिना भी धीरे - धीरे सामान्य हो कर उसके बातों में रूचि लेती रही ।


रुबिना रात भर एहसान जैसे भाई के महफूज़ साए के ख्याल से सोती रही।


सुबह रुबिना ने कहा - " लीजिये मेरा पता रख लीजिए , कभी नानी घर आइये तो जरुर मिलने आइयेगा ।"


एहसान ने कहा - 

" कौन सा नानी घर बहन ?

वो तो मैंने आपको डरते देखा तो झूठ - मूठ के रिश्ते गढ़ता रहा ।

मैं तो पहले कभी इलाहबाद आया ही नहीं ।" 


"क्या..... ?" -- चौंक उठी रुबीना ।


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"बहन ऐसा नहीं है कि सभी लड़के बुरे ही होते हैं,

कि किसी अकेली लड़की को देखा नहीं कि उस पर गिद्ध की तरह टूट पड़ें । हम में से ही तो कोई पिता और भाई भी होते हैं ।"

कह कर प्यार से उसके सर पर हाथ रख मुस्कुरा उठा एहसान ।


रुबिना एहसान को देखती रही जैसे कि कोई अपना भाई उससे विदा ले रहा हो, रुबिना की आँखें गीली हो चुकी थी...


तभी जातेजाते एहसान ने रुबीना से कहा, और हा बहन मेरा नाम एहसान नहीं, दीपक है....!





काश इस संसार मे सब ऐसे हो जाये 

न कोई अत्याचार , न व्यभिचार , भय मुक्त समाज का स्वरूप हमारा देश, हमारा प्रदेश, हमारा शहर, हमारा गांव 

जहाँ सभी बहन बेटियां खुली हवा में सांस ले सकें ।

निर्भय होकर कहीं भी कभी भी आ जा सके....!!


(सत्य घटना पर आधारिक काल्पनिक कहानी)

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