हंगामा , by kumar vishwash.....



                                                    हंगामा

भ्रमर कोई कुमुदिनी पर मचल बैठे तो हंगामा...
हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठे तो हंगामा...
अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मुहब्बत का...
मैं किस्से को हकीकत में बदल बैठा तो हंगामा....



हुए पैदा जो धरती पर, हुआ आबाद हंगामा...
जवानी तो हमारी टल गयी हुआ बर्बाद हंगामा...
हमारे भाल पर तकदीर ने लिख दिया जैसे...
हमारे सामने हैं और हमारे बाद हंगामा...



जब आता है जीवन में खयालातों का हंगामा...
मुलाकातों, हँसीबातों , या जज्बातों का हंगामा...
जवानी के क़यामत दौड़ में  ये  सोचते हैं सब...
ये हंगामे की रातें  हैं या है रातों का हंगामा...


रचना- कुमार विश्वाश

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