अनमोल आभूषण

अनमोल आभूषण


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अंशु अपने ऑफिस पहुंची ही थी कि मोहन को अपने केबिन की तरफ तेजी से भागते हुए देखा। केबिन में पहुंच कर मोहन दुखी मन से बैठ गया। अंशु ने उसके दुखी होने का कारण जानना चाही। मोहन ने बताया "लोग जो चाहते हैं वो उन्हें मिल जाता है, लेकिन मुझे क्यों नहीं मिलता ?"

तब अंशु ने उसकी समस्या को समझते हुए और सुलझाते हुए समय और धैर्य का मतलब एक साधु की कहानी से समझाया। 

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एक साधु नदी के घाट किनारे अपना डेरा डाले हुए थे। वहाँ वह धुनी रमा कर दिन भर बैठे रहते थे और बीच-बीच में ऊँची आवाज़ में चिल्लाते थे, “जो चाहोगे सो पाओगे!”।

उस रास्ते से गुजरने वाले लोग उन्हें मानसिक रूप से पागल-विक्षिप्त समझते थे। वे लोग साधु की बात सुनकर अनुसना कर देते और जो सुनते वे उन पर हँसते थे।

एक दिन एक बेरोजगार युवक उस रास्ते से गुजर रहा था। साधु की चिल्लाने की आवाज़ उसके कानों में भी पड़ी – “जो चाहोगे सो पाओगे!” “जो चाहोगे सो पाओगे!”।

ये वाक्य सुनकर वह युवक साधु के पास आ गया और उससे पूछने लगा, “बाबा! आप बहुत देर से जो चाहोगे सो पाओगे  चिल्ला रहे हैं। क्या आप सच में मुझे वो दे सकते हैैं, जो मैं पाना चाहता हूँ?”

साधु बोले, “हाँ बेटा, लेकिन पहले तुम मुझे ये बताओ कि तुम पाना क्या चाहते हो?”

“बाबा! मैं चाहता हूँ कि एक दिन मैं हीरों का बहुत बड़ा व्यापारी बनूँ। क्या आप मेरी ये इच्छा पूरी कर सकते हैं?” युवक बोला।

“बिल्कुल बेटा! मैं तुम्हें एक हीरा और एक मोती देता हूँ, उससे तुम जितने चाहे हीरे-मोती बना लेना।” साधु की बात सुनकर युवक की आँखों में आशा की ज्योति चमक उठी।

अब साधु ने उस युवक से अपनी दोनों हथेलियाँ आगे बढ़ाने को कहा। युवक ने अपनी हथेलियाँ साधु के सामने कर दी। साधु ने पहले उसकी एक हथेली पर अपना हाथ रखा और बोला, “बेटा, ये इस दुनिया का सबसे अनमोल हीरा है। इसे ‘समय ’ कहते हैं। इसे जोर से अपनी मुठ्ठी में जकड़ लो। इसके द्वारा तुम जितने चाहे उतने हीरे बना सकते हो। इसे कभी अपने हाथ से निकलने मत देना।”

फिर साधु ने अपना दूसरा हाथ युवक की दूसरी हथेली पर रखकर कहा, “बेटा, ये दुनिया का सबसे कीमती मोती है। इसे ‘धैर्य ' कहते हैं। जब किसी कार्य में समय लगाने के बाद भी वांछित परिणाम प्राप्त ना हो, तो इस धैर्य नामक मोती को धारण कर लेना। यदि यह मोती तुम्हारे पास है, तो तुम दुनिया में जो चाहो, वो हासिल कर सकते हो।”

समझदारी से काम लें...

युवक ने ध्यान से साधु की बात सुनी और उन्हें धन्यवाद कर वहाँ से चल पड़ा। उसे सफ़लता प्राप्ति के दो गुरुमंत्र मिल गए थे। उसने निश्चय किया कि वह कभी अपना समय व्यर्थ नहीं गंवायेगा और सदा धैर्य से काम लेगा।

कुछ समय बाद उसने हीरे के एक बड़े व्यापारी के यहाँ काम करना प्रारंभ किया। कुछ वर्षों तक वह दिल लगाकर व्यवसाय का हर गूढ़ रहस्य सीखता रहा और एक दिन अपनी मेहनत और लगन से अपना सपना साकार करते हुए हीरे का बहुत बड़ा व्यापारी बना।

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यह सुन कर मोहन को समझ आ गया कि सफल होने के लिए जीवन में समय और धैर्य का होना बहुत ही आवश्यक है।

सीख : लक्ष्य प्राप्ति के लिए सदा ‘समय’ और ‘धैर्य’ नाम के हीरे-मोती अपने साथ रखें। अपना समय कभी व्यर्थ ना जाने दें और कठिन समय  में धैर्य का दामन ना छोड़ें। सफ़लता अवश्य प्राप्त होगी।

आप अक्सर लोगों को ये कहते सुना होगा कि "अरे! क्या करूं, सारा काम हमसे संभव है, सब कुछ आसानी से हम कर सकते हैं, परन्तु समय ही नहीं मिलता है।" अब हम इस उधेड़बुन में उलझ जाते हैं कि आखिर उनका समय चला कहां जाता है? क्यों नहीं मिलता समय ? 

माना कि व्यस्तता बहुत अधिक है, लेकिन ये परिस्थिति तो सभी के साथ एक जैसा है। ना किसी से कम ना किसी से ज्यादा। सब अपने अपने काम उद्यम में बराबर बराबर व्यस्त हुआ करते हैं। फिर भी समय नहीं मिलता है। और मिलेगा भी नहीं, समय को खोजना होगा, आसानी से ये अनमोल हीरा कभी नहीं मिलेगा।

समय नहीं मिलने का सबसे प्रमुख कारण है योजना (Plan) का नहीं होना यदि आप अपने को भी और अपने कामों को भी योजनाबद्ध तरीके से व्यवस्थित नहीं करेंगे तो आप मेरा विश्वास मानिए, आपको कभी समय नहीं मिलेगा।

समय और धैर्य आपके सफल होने का मूल मंत्र है।



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