गणित का समीकरण

गणित का समीकरण


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एक राज्य में एक पराक्रमी राजा का शासन था। उसकी कोई संतान नहीं थी। ढलती उम्र के कारण राज्य के भावी उत्तराधिकारी को लेकर वह अत्यंत चिंतित था। अनेक वैद्यों को दिखाने के बाद भी वह संतान सुख से वंचित ही रहा। अंततः उसने राज्य के ही किसी योग्य नवयुवक को राज्य की बाग़-डोर सौंप देने का निश्चय किया।

भावी उत्तराधिकारी के चयन हेतु उसने योग्यता परीक्षण का आयोजन किया। इस हेतु एक शानदार महल का निर्माण करवाया गया। महल के दरवाज़े पर गणित (Mathematics) का एक समीकरण (Equation) अंकित कर पूरे राज्य में घोषणा कर दी गई कि राज्य के सभी नवयुवक/गणितज्ञ महल का दरवाज़ा खोलने के लिए आमंत्रित हैं। दरवाज़े पर अंकित समीकरण हल कर दरवाज़ा खोलें। जो दरवाज़ा खोलने में सफ़ल होगा, उसे महल उपहार स्वरुप प्रदान किया ही जायेगा और साथ ही साथ राज्य का उत्तराधिकारी भी घोषित कर दिया जायेगा।

घोषणा के दिन से ही उस नव-निर्मित महल में नवयुवकों का तांता लग गया। सुबह से लेकर शाम तक, शाम से लेकर रात तक, रात से लेकर सुबह तक, नवयुवक वहाँ आते और दरवाज़े पर अंकित गणित के समीकरण को हल करने का प्रयास करते। किंतु बड़े ही आश्चर्य की बात ये थी कि कोई भी उसे हल नहीं कर पा रहा था। कई उसे लिखकर या याद करके जाते और घर पर उसका हल निकालने का हर संभव प्रयास करते। किंतु फिर भी असफ़ल रहते।

कई दिन बीत गए। राज्य के बड़े से बड़े गणितज्ञ भी उस समीकरण का हल निकाल पाने में असमर्थ रहे। तब राजा ने दूसरे राज्यों के गणितज्ञों को आमंत्रित किया। दूसरे राज्य के गणितज्ञ आये और गणित का वह समीकरण हल करने लगे। जैसे–जैसे दिन ढलता गया, एक-एक करके गणितज्ञ वहाँ से जाते गए। अंत में मात्र तीन लोग शेष बचे। उनमें से दो दूसरे राज्य के गणितज्ञ थे, किंतु तीसरा गाँव का ही एक साधारण सा युवक था।

दोनों गणितज्ञ जहाँ गणित का समीकरण हल करने में लगे हुए थे, वहाँ युवक एक कोने में खड़ा होकर उन्हें देख रहा था। राजा ने जब उसे यूं ही खड़ा देखा, तो पास बुलाकर पूछा, “तुम दरवाज़े पर अंकित समीकरण हल क्यों नहीं कर रहे?”

युवक बोला, “महाराज, मैं तो बस यूं ही इन नामी-गिरामी गणितज्ञों को देखने आया हूँ। ये अपने/अन्य राज्यों के इतने बड़े गणितज्ञ हैं। इन्हें समीकरण हल करने दीजिये। यदि इन्होंने हल निकाल लिया, तो राज्य के उत्तराधिकारी बन जायेंगे। इससे बड़ी ख़ुशी की बात और क्या होगी? यदि ये समीकरण हल नहीं कर कर पाए, तब मैं भी कोशिश करके देखूंगा।

इतना कहकर युवक एक कोने में बैठकर गणितज्ञों को देखने लगा। पूरा दिन निकल गया और शाम घिर आई। किंतु दोनों गणितज्ञ समीकरण हल नहीं कर पाए। उनके मस्तिष्क में पूरे दिन मात्र एक ही प्रश्न घूम रहा था कि आखिर इस समीकरण में ऐसा भी क्या है? कैसे ये हल होगा? कैसे महल का ये दरवाज़ा खुलेगा?

पूरा प्रयास करने के बाद भी वे समीकरण हल नहीं कर पाए। जब उन्होंने हार मान ली, तो कोने में बैठा युवक उठकर दरवाज़े के पास गया और जाकर उसे धीरे से धक्का दे दिया। जैसे ही उसने दरवाज़े को धक्का दिया, दरवाज़ा खुल गया।

दरवाज़ा खुलते ही लोग उससे पूछने लगे कि तुमने ऐसा क्या किया कि महल का दरवाज़ा खुल गया। युवक बोला, “जब मैं बैठकर सबको गणित का समीकरण हल करते देख रहा था, तो मेरे दिमाग में विचार आया कि हो सकता है कि दरवाज़ा खोलने का कोई समीकरण ही न हो। इसलिये मैं गया और सबसे पहले जाकर दरवाज़े को धक्का दे दिया। दरवाज़ा खुल गया। दरवाज़े खोलने का कोई समीकरण था ही नहीं।”

उसका उत्तर वहाँ उपस्थित राजा ने भी सुना और बहुत प्रसन्न हुआ। उसने युवक को वह महल भी दिया गया और राज्य का भावी उत्तराधिकारी भी घोषित किया।

सीख : ज़िंदगी में हम कई बार ऐसी परिस्थिति में फंस जाते हैं, जब हमें लगता है कि हमारे सामने पहाड़ जैसी समस्या है। जबकि वास्तव में कोई समस्या होती ही नहीं या होती भी है, तो बहुत ही छोटी सी। लेकिन हम उसे बहुत बड़ा बनाकर उसमें उलझे रहते हैं। बाद में उस समस्या का समाधान या तो अपने आप ही निकल जाता है या फिर थोड़े से प्रयास के बाद। तब हमें अहसास होता है कि इतनी सी समस्या के लिए हमने कितना समय बर्बाद कर दिया। समस्या सामने आने पर विचलित न हो। शांति से सोचे और फिर समाधान करने का प्रयास करें।




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